वाराणसी: पार्श्वनाथ विद्यापीठ निदेशक डाॅ. दीना नाथ शर्मा के द्वारा ‘प्राकृत भाषा शिक्षण और प्रशिक्षण’ विषय पर 21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन समारोह का आयोजन प्रातः10:30 बजे से किया गया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो. जगत राम भट्टाचार्य ने किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी, विशिष्ट अतिथि सुदेव बरड़ एवं सचिव पार्श्वनाथ रहे.
कार्यक्रम का प्रारम्भ जैन मंगलाचरण डाॅ. प्रशान्त मंडल और वैदिक मंगलाचरण डा. बप्पा राजबंशी ने किया। उसके बाद अतिथियों के द्वारा भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। अतिथियों का स्वागत संस्थान के निदेशक डाॅ. दीनानाथ शर्मा ने किया। तत्पश्चात् संस्थान के सह-निदेशक डा. ओम प्रकाश सिंह ने संस्था के बारे में लोंगो को जानकारी दी।
उन्होंने कार्यशाला के आयोजन का संक्षिप्त परिचय देते हुए प्रतिभागियों को इक्कीस दिनों तक चलने वाली कार्यशाला की रूपरेखा भी प्रस्तुत की। संस्थान के सचिव एवं विशिष्ट अतिथि सुदेव बरड़ ने संस्थान की तरफ से सभी का स्वागत करते हुए सभी प्रतिभागियों को बहुत-बहुत बधाई दी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी ने कहा कि संस्कृत साहित्य में कहीं भी प्राकृत को संस्कृत से कम नहीं समझा गया है। प्राकृत भाषा को बराबर का दर्जा दिया गया है। नाट्यकार भरतमुनि ने भी अपने नाट्यशास्त्र में प्राकृत का उल्लेख करते हुए कहा है कि संस्कृत भाषा हर जगह समान होती है उसमें देश काल के अनुसार बदलाव नहीं होता है, किन्तु प्राकृत में देश काल के अनुसार परिवर्तन होता रहता है। इसीलिए उसके कई भेद दिखाई पड़ते हैं जैसे-शौरसेनी, मागधी आदि।
प्रो. जगत्राम भट्टाचार्य ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन कहा कि प्राचीन भाषाओं में संस्कृत, प्राकृत और पालि तीन भाषाएँ प्रमुख मानी गयी है। उन्होंने बताया कि पालि भाषा के 90 प्रतिशत ग्रन्थ बौद्ध दर्शन के है, किन्तु प्राकृत भाष के ग्रन्थों में जैन ग्रन्थों के साथ साथ अन्य धर्मों के ग्रन्थों में भी उपलब्ध है। अन्त में सह-निदेशक डा. ओम प्रकाश सिंह ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया।
इस कार्यशाला में देश के कोने-कोने से प्राकृत भाषा के प्रतिनिधि विद्वान रीसोर्स पर्सन के रूप में पधार रहे हैं। इस कार्यशाला में लगभग 25 प्रतिभागी भारत के विभिन्न प्रान्तों से भाग ले रहे हैं। कार्यशाला में 21 दिनों तक प्राकृत भाषा के विभिन्न पक्षों पर विद्वानों के व्याख्यान प्रस्तुत किये जायेगें।

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