यूपी के बाराबंकी जिले के एक छोटे से गांव निजामपुर में इतिहास रचा गया है। इस गांव में पहली बार किसी लड़के ने 10वीं पास की है और वो लड़का है 15 साल का रामसेवक।
करीब 30 घरों वाले इस दलित बहुल गांव में शिक्षा अब तक सिर्फ सपना रही है। लेकिन रामसेवक ने उस सपने को हकीकत में बदल दिया। वह लड़का जो शादियों में सिर पर लाइट उठाकर दिन-रात मजदूरी करता है, उसने यूपी बोर्ड की 10वीं परीक्षा 55% अंकों के साथ पास की। ये केवल नंबर नहीं, एक संघर्ष की जीत है।
जब बाराबंकी के डीएम को इस उपलब्धि के बारे में पता चला, तो उन्होंने रामसेवक को बुलाया। उस दिन रामसेवक ने पहली बार जूते पहने। यह केवल जूता पहनने की बात नहीं थी, बल्कि एक नई ज़िंदगी की शुरुआत थी।
रामसेवक तीन भाइयों में सबसे बड़ा है, और परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी उसी के कंधों पर है। दिन में मजदूरी, रात में सिर पर लाइट, और फिर थके हुए शरीर से देर रात तक पढ़ाई। फीस के 2100 रुपये भी उसने अपनी मेहनत से कमाए।
रामसेवक ने सिर्फ 10वीं पास नहीं की, उसने हजारों बच्चों को यह यकीन दिया है कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर इरादा मजबूत हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं।
आज निजामपुर का यह बेटा न सिर्फ अपने गांव के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक मिसाल बन गया है।

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