मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: एक अनोखी शिव-पार्वती की पूजा

जब हम किसी शिव मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं, तो अक्सर भगवान शिव ही पूजा के केंद्र में होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा ज्योतिर्लिंग भी है, जहां भगवान शिव के साथ मां पार्वती की भी पूजा होती है? इस ज्योतिर्लिंग का नाम है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग। यह आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है और भारत के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस पवित्र स्थल की विशेषता यह है कि यहां भगवान शिव और मां पार्वती दोनों की एक साथ पूजा की जाती है। आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा और रोचक जानकारी।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का अर्थ और महत्व

‘मल्लिकार्जुन’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है – ‘मल्लिका’, जिसका अर्थ है मां पार्वती, और ‘अर्जुन’, जिसका अर्थ है भगवान शिव। इस नाम से ही यह स्पष्ट होता है कि यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव और मां पार्वती दोनों का प्रतीक है। यहां दोनों देवताओं की पूजा एक साथ की जाती है, जो इस स्थल को विशेष बनाती है।

श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

भारत के प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में दूसरा स्थान रखने वाला मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित है। यह स्थल भगवान शिव के प्रति आस्था रखने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यहां आने वाले भक्तों को न केवल शिवजी का आशीर्वाद मिलता है, बल्कि मां पार्वती की कृपा भी प्राप्त होती है।

गणेश और कार्तिकेय की पौराणिक कथा

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना के पीछे एक प्राचीन पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। यह कथा भगवान शिव के पुत्रों, गणेश और कार्तिकेय से जुड़ी है। एक समय, भगवान शिव और मां पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों की शादी कराने का विचार किया। इसके लिए उन्होंने दोनों के बीच एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि जो भी पहले संसार की परिक्रमा करके आएगा, उसकी शादी पहले कराई जाएगी।

कार्तिकेय जी ने अपने वाहन मोर पर सवार होकर संसार की परिक्रमा शुरू कर दी, जबकि गणेश जी ने अपनी बुद्धिमानी से माता-पिता यानी शिव और पार्वती की परिक्रमा कर ली। उनके लिए माता-पिता ही पूरा संसार थे। इस समझदारी पर भगवान शिव और मां पार्वती बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने गणेश जी का विवाह पहले कर दिया।

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कार्तिकेय का क्रोध और श्रीशैलम की यात्रा

जब कार्तिकेय संसार की परिक्रमा करके वापस लौटे, तो उन्हें यह जानकर बहुत गुस्सा आया कि उनके छोटे भाई गणेश का विवाह पहले हो चुका है। क्रोध में आकर वे कैलाश छोड़कर दक्षिण भारत के क्रौंच पर्वत (जो श्रीशैलम के नाम से भी जाना जाता है) पर चले गए। यहां आकर उन्होंने ध्यान लगाना शुरू किया।

शिव-पार्वती का पुत्र प्रेम

भगवान शिव और मां पार्वती ने कार्तिकेय को मनाने का कई बार प्रयास किया, लेकिन वे नहीं माने। आखिरकार शिव-पार्वती ने यह निर्णय लिया कि वे समय-समय पर अपने पुत्र से मिलने श्रीशैलम जाएंगे। ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या के दिन भगवान शिव और पूर्णिमा के दिन मां पार्वती यहां आकर अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने आते हैं। इसी स्थल पर भगवान कार्तिकेय ने एक शिवलिंग की स्थापना की, जो आगे चलकर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की मान्यता

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। यहां शिव और पार्वती की एक साथ पूजा की जाती है, जो इसे अन्य ज्योतिर्लिंगों से अलग बनाता है। भक्तों का मानना है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से उन्हें भगवान शिव और मां पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग न केवल भगवान शिव के प्रति आस्था का केंद्र है, बल्कि मां पार्वती के प्रेम और देखभाल का प्रतीक भी है। इस पवित्र स्थल की यात्रा भक्तों के लिए एक अनूठा आध्यात्मिक अनुभव होती है। अगर आप कभी दक्षिण भारत की यात्रा पर जाएं, तो इस दिव्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन जरूर करें। यहां आपको शिव और शक्ति, दोनों की कृपा एक साथ मिलेगी।

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