“मैं आतिशी ईश्वर की शपथ लेती हूं…” इस पंक्ति के साथ ही आतिशी ने दिल्ली की 8वीं और तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया। पार्टी ने उन्हें यह महत्वपूर्ण पद सोच-समझकर सौंपा है, क्योंकि वे न केवल महिला हैं, बल्कि पार्टी के प्रति पूरी तरह वफादार भी हैं।
पार्टी का भरोसा और चुनौतियाँ
अरविंद केजरीवाल ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की तरह जोखिम जानबूझकर नहीं उठाया है। उन दोनों ने अपनी जगहों पर जो मुख्यमंत्री नियुक्त किए थे, उन्होंने कुछ महीनों बाद ही मुश्किलें खड़ी कर दी थीं। लेकिन केजरीवाल ने अपनी सीट पर आतिशी को बैठाने का निर्णय गंभीरता से लिया है।
दिल्ली की राजनीतिक पृष्ठभूमि
दिल्ली की स्थिति बिहार और झारखंड जैसी नहीं है, क्योंकि यहां अगले चार-पांच महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। आचार संहिता भी जल्द लागू हो जाएगी। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल पर नजर डालें तो कई का कार्यकाल प्रभावी रहा है।
ऐतिहासिक मुख्यमंत्री
दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री ब्रह्म प्रकाश रहे, जिन्होंने 17 मार्च 1952 से 12 फरवरी 1955 तक कार्य किया। इसके बाद गुरमुख निहाल सिंह (1955-1956) और मदन लाल खुराना (1993-1996) का नाम आता है। साहिब सिंह वर्मा (1996-1998) के बाद सुषमा स्वराज बनीं, जो मात्र 12 अक्टूबर 1998 से 3 दिसंबर 1998 तक मुख्यमंत्री रहीं।
शीला दीक्षित का प्रभावी कार्यकाल
दिल्ली की दूसरी महिला मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का कार्यकाल उल्लेखनीय रहा। उन्होंने 3 दिसंबर 1998 से लेकर 28 दिसंबर 2013 तक दिल्ली की सेवा की, जिसमें कॉमनवेल्थ गेम्स और मेट्रो के आगमन जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य शामिल हैं।
आतिशी का नया अध्याय
अब आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने आतिशी को मौका दिया है। दिल्लीवासियों को उनसे बहुत उम्मीदें हैं। देखना यह है कि आतिशी इस नई भूमिका में कितनी सफल होती हैं।
