वाराणसी: बिजली के निजीकरण के खिलाफ विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के बैनर तले बनारस के बिजली कर्मियों ने आज 280वें दिन भी विरोध प्रदर्शन जारी रखा। कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि निजीकरण की पूरी प्रक्रिया कॉर्पोरेट घरानों से मिलीभगत और बड़े घोटाले की ओर इशारा करती है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से निजीकरण का निर्णय निरस्त कराने और मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की।

संघर्ष समिति के पांच बड़े सवाल
- कॉर्पोरेट की भूमिका – नवंबर में लखनऊ में आयोजित मीटिंग में निजी घरानों की सक्रिय भागीदारी और स्पॉन्सरशिप, जहां पावर कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष को डिस्कॉम एसोसिएशन का महासचिव बनाया गया।
- कंसल्टेंट विवाद – ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट ग्रांट थॉर्टन पर हितों के टकराव और झूठे शपथपत्र के आरोप के बावजूद हटाया नहीं गया और उसी से निजीकरण के दस्तावेज तैयार कराए गए।
- गोपनीय डॉक्यूमेंट – बिडिंग हेतु ड्राफ्ट स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट 2025 जारी कर दिया गया, जबकि इसे न तो सार्वजनिक किया गया और न ही आपत्तियां आमंत्रित की गईं।
- कॉर्पोरेट से मिलीभगत – टाटा पावर के सीईओ के बयानों से यह पुष्टि होती है कि निजीकरण दस्तावेज उन्हीं की चर्चा से तैयार किए गए।
- संपत्तियों की बिक्री का आरोप – पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को इक्विटी आधार पर कौड़ियों के मोल बेचने की तैयारी, जिससे 42 जिलों की बिजली व्यवस्था निजी घरानों के हाथ में जा सकती है।
संघर्ष समिति की मांग
पदाधिकारियों ने कहा कि यह मामला बेहद गंभीर है और लाखों करोड़ रुपये की बिजली संपत्तियों को “लूट” से बचाने के लिए मुख्यमंत्री को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि जब तक निजीकरण का फैसला वापस नहीं होता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
सभा को ई. मायाशंकर तिवारी, ई. एस.के. सिंह, ओ.पी. सिंह, ई. नीरज बिंद, जिउतलाल, राजेंद्र सिंह, अंकुर पांडेय समेत कई नेताओं ने संबोधित किया।

Author: Ujala Sanchar
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