दिवाली पूजा 2024 दिवाली जिसे हम दीपावली और दीप उत्सव के नाम से भी जानते हैं हमारे हिंदू धर्म का सबसे प्रमुख और बड़ा ही धूमधाम से मनाए जाने वाला यह त्यौहार है यह जो त्यौहार है वह कम से कम 5 दिन तक चलने वाला पर्व होता है जो न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक के नजरिया से भी बहुत ही खास होता है दिवाली के शाम आप लोग अपने घर, दुकान, ऑफिस और फैक्ट्री में माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की नई मूर्ति को स्थापित करते होंगे इस पूजा के साथ यह मान्यता जुड़ी होती है कि जो देवी लक्ष्मी सर सुख समृद्धि की प्राप्ति की जा सके और भगवान गणेश से बुद्धि और विवेक का आशीर्वाद भी मिल सके आपको लेकिन एक सवाल तो आप में से बहुत लोग के मन में आया होगा कि आखिर हर साल नई मूर्ति क्यों खरीदी? क्यों हम पुरानी मूर्ति का विसर्जन करके नई मूर्ति में ही पूजा करते हैं?
आज हम इस लेख में आपको डिटेल में बताएंगे की लक्ष्मी गणेश की नई मूर्ति खरीदने के पीछे क्या धार्मिक और सांस्कृतिक वजह है और इस परंपरा को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है।
लक्ष्मी-गणेश की नई मूर्ति का महत्त्व
हर साल दिवाली के कुछ खास मौके पर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की जो मिट्टी से बनी हुई मूर्ति होती है उसे खरीदने की परंपरा है या मूर्ति दिवाली के दिन घर या फिर व्यापार के स्थान पर स्थापित किया जाता है और पूरे साल इस मूर्ति की ही पूजा की जाती है जब यह मूर्ति हर साल पुराना हो जाता है तो इस मूर्ति का आप विसर्जन कर देते हैं और अगली दिवाली पर एक नई मूर्ति लाकर के फिर उसकी पूजा करते हैं इस परंपरा के पीछे ऐसे कई धार्मिक और व्यावहारिक वजह है जो कि आज हम आपको बताएंगे।
क्यों मिट्टी की मूर्ति होती है अनिवार्य?
लक्ष्मी गणेश की नई मूर्ति खरीदने का जो पहले वजह है यह है कि आमतौर पर मिट्टी से बना हुआ ही मूर्ति क्यों इस्तेमाल किया जाता है। जब मूर्ति पर्यावरण के अनुकूल होता है और प्राचीन काल सही मिट्टी की मूर्ति का चलन आ रहा है मतलब की मिट्टी से बना हुआ मूर्ति का ही बहुत पहले से पूजा चला आ रहा है जब भी देवी देवताओं की धातु सोने,चांदी , पीतल की मूर्ति की बात आती है तो आप उन्हें बार-बार नहीं बदल सकते है। टूट जाती है या फिर उनका रंग फीका पड़ जाता है इसी वजह से या मिट्टी से बनी जो लक्ष्मी गणेश की मूर्ति होती है हर साल नहीं खरीदी जाती है।
पुरानी मूर्ति का विसर्जन: एक धार्मिक प्रक्रिया
पुरानी मूर्ति को विसर्जित करना एक धार्मिक और शास्त्र सम्मत की प्रक्रिया है यह एक प्रकार की शुद्धि मानी जाती है मेरा हाथ पुराने हर साल की जितनी भी बड़ा गलत ऊर्जा और जितने भी संकट होते हैं सबको विसर्जित करने के जरिए से खत्म कर दिया जाता है दिवाली पर एक नई मूर्ति को लाकर के पूजा का यह अर्थ है कि नए साल की एक शुरुआत नवीन श्रद्धा और आस्था के साथ किया जाएगा जितने भी पुरानी मूर्ति है उसके विसर्जन से हमें यह सीख मिलता है कि समय के साथ पुरानी चीजों को बदल देना चाहिए से विदा कर देना चाहिए नई चीजों का ही घर में स्वागत करना चाहिए यह जो प्रक्रिया है या आत्म शुद्धि और आंतरिक शांति का भी प्रतीक माना गया है।
प्राचीन मान्यताएं और परंपराएं
प्राचीन काल से ही दिवाली पर नई-नई गणेश लक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित करने की परंपरा चलती आ रही है उसे समय मिट्टी से बना हुआ है मूर्ति ज्यादा से ज्यादा प्रचलित था जो कि समय के साथ-साथ खराब हो जाता है जैसे-जैसे तकनीक विकास हो रहा है धातु की मूर्तियां भी प्रचलन में आ रही है लेकिन क्या आपको पता है मिट्टी से बनी हुई मूर्ति का धार्मिक महत्व कभी कम ही नहीं हुआ है मिट्टी को प्राकृतिक का बहुत ही बड़ा हिस्सा माना गया है और देवी देवताओं की जो मूर्तियां होती है वह मिट्टी से बनाने की यही वजह है कि यह पृथ्वी से जो हमारा और आपका रिश्ता है उसको और भी ज्यादा गहरा कर देता है।
नई मूर्ति खरीदने का सही समय: धनतेरस का महत्त्व
दिवाली से पहले धनतेरस का पर्व आता है जिसे की बहुत ही शुभ माना जाता है इस दिन का खास रूप से धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा होती है और यह विश्वास किया जाता है कि इस दिन नई चीजों की खरीदारी से परिवार में सुख समृद्धि आता है इसी वजह से धनतेरस पर लक्ष्मी गणेश की मूर्ति को नया खरीदना खास रूप से शुभ माना गया है 2024 में धनतेरस का जो दिन है मंगलवार 29 अक्टूबर को होगा और इसके बाद 31 अक्टूबर को दिवाली का जो प्रथम पर्व है उसे मनाया जाएगा।
नई मूर्ति क्यों लाते हैं हर साल?
जब भी आप नई मूर्ति लाते हैं तो इसका यह अर्थ है कि आपके जीवन में नई ऊर्जा और अच्छे चीजों का स्वागत कर रहे हैं नैमूर्ति पुरानी कठिनाइयों और बुराई को बढ़ाने से मुक्ति दिलाने का प्रतीक है या एक तरह से जीवन के प्रति आपका जो नजरिया है और भी ज्यादा विश्वास को दोबारा स्थापित करने का अवसर भी देता है मुश्किल साथी नैमूर्ति का लाना परिवार में एक नई शुरुआत का भी संकेत देता है ऐसी मान्यता है की नई मूर्ति के साथ देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश का आशीर्वाद भी नए तरीके से मिलता है आपको।
पर्यावरण-संवेदनशील मूर्तियाँ: आज की जरूरत
आज के समय में जब भी पर्यावरणीय संकट बढ़ रहा है तो मिट्टी की मूर्तियों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। प्लास्टर ऑफ पेरिस और अन्य केमिकल से बनी मूर्तियाँ जलाशयों और अन्य प्राकृतिक स्रोतों को प्रदूषित करती इसीलिए मिट्टी से बना हुआ मूर्ति ही आप खरीदे और विसर्जित करने की परंपरा न केवल धार्मिक नजरिया से बल्कि पर्यावरण के नजरिया से भी बहुत ही जरूरी है।
पूजा और विसर्जन का शुद्धिकरण
लक्ष्मी गणेश की पूजा न केवल धन-धान्य और समृद्धि का प्रतीक के लिए होता है बल्कि यह भी माना जाता है कि यह पूजा मन शरीर और आत्मा के शुद्धिकरण का भी एक जरिया है विसर्जन की जो प्रक्रिया है उसका धार्मिक महत्व यह है कि इससे आपके जीवन में आई हुई जितनी भी बुराई वाले ऊर्जा होती है उसको समाप्त कर सकता है और नए साल की शुरुआत शुद्ध मन से भी किया जा सकता है।
मूर्ति स्थापना का विधान
लक्ष्मी गणेश की मूर्ति की स्थापना का भी बहुत ही खास महत्व होता है इसे घर के उत्तर पूर्व कोने में स्थापित कर सकते हैं जो की वस्तु के अनुसार बहुत ही या दिशा शांति ,अच्छा ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक माना गया है स्थापना के समय आपको मंत्र उच्चारण और विधिवत पूजा करेंगे जिससे कि आपके घर में अच्छी ऊर्जा का प्रवाह होगा।
मेटा डिस्क्रिप्शन
दिवाली 2024 पर लक्ष्मी-गणेश की नई मूर्ति खरीदने का महत्व जानें। इस लेख में जानिए क्यों हर साल नई मूर्ति का पूजन किया जाता है, इसके पीछे की मान्यताएं और परंपराएं। दिवाली पूजा के दौरान नई मूर्ति के साथ समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति का रहस्य खोजें।
Neha Patel is a content and news writer who has been working since 2023. She specializes in writing on religious news and other Indian topics. She also writes excellent articles on society, culture, and current affairs.