वाराणसी: पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर और बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह की जयंती के पांच दिवसीय समारोह का हुआ भव्य समापन

वाराणसी: चंद्रशेखर फाउंडेशन के अध्यक्ष हिमांशु सिंह के तत्वाधान में भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर और बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह की जयंती के पांच दिवसीय समारोह का भव्य समापन बरईपुर, सारनाथ शक्तिपीठ के प्रांगण में हुआ. इस समारोह में प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा बनारस जिला बोर्ड के पहले अध्यक्ष बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह की भी जयंती मनाई गई.

इस अवसर पर गोष्ठी तथा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ चंद्रशेखर जी एवं बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलन से हुआ. इस अवसर पर गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए बिहार सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खां ने कहा कि चंद्रशेखर के जीवन में विद्रोह और अनुशासन दोनों का अद्भुत सामंजस्य देखने को मिलता है जो राजनीति में सर्वथा दुर्लभ वस्तु है.

राजनीति के अपने लंबे सफर में चंद्रशेखर ने सत्य के पक्ष में खड़ा होने में कभी चूक नहीं किया और इसके लिए उन्होंने जेल जाना भी स्वीकार किया आपातकाल के विरोध में सबसे मुखर स्वर का नाम चंद्रशेखर है. अपने राजनीतिक जीवन में चंद्रशेखर ने गांधी और नरेंद्र देव दोनों के विचारों का समन्वय करते हुए उसे नीतियों और कार्यक्रमों में उतारने का भरपूर प्रयास किया. प्रधानमंत्री के रूप में अपने अल्पकाल के कार्यकाल में उन्होंने विश्व के महा शक्तियों को दो टूक जवाब देते हुए मुखरता से मुकाबला किया. स्वर्गीय चंद्रशेखर मृत्यु पर्यंत संपूर्ण क्रांति के असफलता को लेकर दुखी रहते थे। वह भारत के गांव गरीब की तकदीर बदलने वाले स्वप्नदर्शी नेता थे.

देश के गौरव चंद्रशेखर पूर्वांचल के राजनीतिक अभिमान के प्रतीक थे. चंद्रशेखर ने कभी सिंहासन के लिए शीर्षासन नहीं किया वह गौरव और स्वाभिमान को राजनीति का स्थायी भाव मानते थे। चंद्रशेखर की राजनीति में गांव की खुशबू और गरीब की पीड़ा इस कदर समय हुई थी कि कभी-कभी वह पूंजीवादी व्यवस्था को घृणा से देखते हुए नजर आते हैं.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि माननीय सुशील सिंह ने कहा चंद्रशेखर जी का महात्मा गांधी और महात्मा बुद्ध विचारो में प्रबल आस्था थी. वे मानते थे कि देश और दुनिया के समस्याओं का समाधान गोली से नही हो सकता. संवाद और सौहार्द की बोली ही समाधान का रास्ता है. आजादी के बाद पूरे देश को भावनात्मक एकता के सूत्र पिरोने का यदि कोई जमीनी प्रयास हुआ तो उसके अगुवा स्वर्गीय चंद्रशेखर जी थे. उन्होंने भारत यात्रा के माध्यम से भारत के क्षेत्रीय और भाषाई विविधता का सम्मान करते हुए भारत की राजनीतिक एकता और अखंडता को मजबूत करने में एक युगांतरकारी कदम उठाया.

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इस अवसर पर मुख्य वक्ता रवीन्द्र द्विवेदी ने कहा कि चंद्रशेखर ने राजनीति में मतभेद और मनभेद के अंतर को ठीक ढंग से परिभाषित किया उन्होंने कभी किसी राजनेता के खिलाफ बदले की भावना से कोई कदम नहीं उठाया प्रधानमंत्री बनने के पहले लंबे राजनीतिक जीवन में किसी भी सार्वजनिक सरकारी पद को नहीं स्वीकार करना यह चंद्रशेखर की एक ऐसी नसीहत है. जिससे वर्तमान की पद लोलुप राजनीतिक मार्गदर्शन प्राप्त कर सकती है ने कहा कि चंद्रशेखर जमीन से उठकर खड़े हुए राजनेता थे। जिन्होंने भारतीय संसद को अपनी भाषा और स्वर का से समृद्ध किया.

इस अवसर पर प्रमुख रूप से विचार व्यक्त करने वालों में अजय सिंह ब्लॉक प्रमुख अभिषेक सिंह ब्लाक प्रमुख गोपाल नारायण सिंह धर्मेंद्र रघुवंशी सुभाष चंद्र सिंह गुड्डू पूर्व अध्यक्ष महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ डॉ हरदत शुक्ल डॉ. हर्षवर्धन सिंह पूर्व अध्यक्ष उदय प्रताप महाविद्यालय वीरेंद्र सिंह पूर्व अध्यक्ष महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ रूपेश सिंह अरुण त्रिपाठी हंगामा गुरु देवेंद्र सिंह पूर्व ब्लाक प्रमुख अमित सिंह एडवोकेट अनुराग राय एडवोकेट मोहम्मद अनीस विजय विकास श्रीवास्तव एडवोकेट सेंट्रल बार एसोसिएशन के पूर्व महामंत्री शशिकांत श्रीमान विजय शंकर सिंह पिंटू सिंह सीकरी आनंद राव थे.

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