नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की महिमा

नवरात्रि के दूसरे दिन, देवी दुर्गा के दूसरे स्वरूप, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। यह दिन हमें सिखाता है कि अगर हम सच्ची श्रद्धा और दृढ़ निश्चय से किसी कार्य में जुट जाएं, तो हम अपने सभी लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं। मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। उनका नाम ‘ब्रह्मचारिणी’ इस बात का प्रतीक है कि वे कठोर तपस्या और ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं।

कैसे पड़ा मां का नाम ब्रह्मचारिणी?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था। नारद मुनि के कहने पर, उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की। इसी कठिन तपस्या के कारण उन्हें ‘तपस्विनी’ या ‘ब्रह्मचारिणी’ कहा जाता है। मां के इस रूप की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है, जो हमें समर्पण और दृढ़ संकल्प का पाठ पढ़ाती है।

मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत सुंदर और सरल है। वे श्वेत वस्त्र धारण किए रहती हैं, एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल लिए हुए। इनका शांत और दयालु स्वभाव भक्तों को जल्दी प्रसन्न करता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से विशेष रूप से पढ़ाई करने वाले बच्चों को ज्ञान और विद्या में प्रगति मिलती है।

मां ब्रह्मचारिणी का भोग

नवरात्रि के दूसरे दिन मां को चीनी या मिसरी का भोग अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि इससे भक्तों को लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। चीनी का भोग अर्पित करने से अच्छे विचार भी आते हैं और मां की तपस्या को याद करके हमें संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है। मां को पीले रंग की वस्त्र, फूल और फल भेंट करने का विशेष महत्व है, क्योंकि यह रंग ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।

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पूजाविधि

नवरात्रि के दूसरे दिन, भक्त मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है। भक्त पीले वस्त्र पहनकर देवी को पीले रंग की वस्तुएं अर्पित करते हैं। पूजा में पंचामृत स्नान, रोली-कुमकुम, अगरबत्ती और हवन सामग्री शामिल होती है।

मां को पंचामृत से स्नान कराकर रोली और कुमकुम चढ़ाया जाता है। इसके बाद भोग अर्पित करने के साथ-साथ देवी के ध्यान मंत्र का जाप किया जाता है। पूजा के अंत में पान-सुपारी, आरती और दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है।

मां ब्रह्मचारिणी की आरती

पूजा का समापन मां ब्रह्मचारिणी की आरती से होता है, जिसमें उनकी महिमा का गुणगान किया जाता है। इस आरती में भक्त अपनी श्रद्धा के साथ मां से सुख-समृद्धि और ज्ञान की प्रार्थना करते हैं।

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