Search
Close this search box.

काशी का ऐतिहासिक तुलसी अखाड़ा बना बेटियों का दंगल मैदान, नागपंचमी पर दिखा नया इतिहास

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

[responsivevoice_button voice="Hindi Female"]

वाराणसी: जहां कभी गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस की रचना के दौरान रियाज करते थे, आज उसी अखाड़े में बेटियां दम दिखा रही हैं। नागपंचमी के पावन पर्व पर काशी का ऐतिहासिक तुलसी घाट स्थित स्वामीनाथ अखाड़ा बेटियों के जोर-आजमाइश से गुलजार रहा। जहां 478 वर्षों से केवल पुरुष पहलवान अखाड़े में उतरते थे, वहीं अब बालिकाएं भी परंपरा में भागीदार बन रही हैं।

आज अखाड़े में पारंपरिक पूजन के साथ संकट मोचन मंदिर के महंत विशम्भर नाथ मिश्र ने कुश्ती दंगल की शुरुआत की। मिट्टी के अखाड़े में लड़कों और लड़कियों दोनों ने दमखम दिखाया। खास बात यह रही कि इस बार नीदरलैंड से आए पहलवान हर्बर्ट भी जोड़ी गद्दा फेरते नजर आए।

कुश्ती अब केवल लड़कों का खेल नहीं

‘कुश्ती तो लड़कों का खेल है’—इस धारणा को तोड़ते हुए पिछले 7 वर्षों से इस अखाड़े में लड़कियों की एंट्री शुरू हुई है। कशिश, लक्ष्मी, पलक, वसुंधरा, खुशी, साक्षी जैसी बेटियां आज दांव-पेच के साथ अखाड़े में नजर आईं। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकने वाली इन बेटियों ने बताया कि अब अखाड़ा उनका भी है।

कशिश कहती हैं “पहलवानी मेरे DNA में है। मुझे गर्व है कि मैं इस परंपरा की पहली बेटी बनी।”

नीदरलैंड में भी है देशी कुश्ती का जलवा

नीदरलैंड से आए पहलवान हर्बर्ट ने बताया कि उन्हें भारतीय पहलवानी की देशी स्टाइल और पारंपरिक जोड़ी गद्दा बेहद पसंद है। वे इसे अपने देश में भी सिखाते हैं।

अखाड़े का ऐतिहासिक महत्व

इस अखाड़े की स्थापना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। जब वे तुलसी घाट पर रामचरितमानस की रचना कर रहे थे, तब शरारती तत्व उन्हें परेशान करते थे। ऐसे में उन्होंने पहलवानों को बुलाकर अखाड़ा बनवाया और स्वयं भी रियाज किया। तब से यह अखाड़ा वीरता और संस्कृति का प्रतीक बन गया।

Leave a Comment

और पढ़ें