श्री चित्रगुप्त जी की आरती हिंदू धर्म में विशेष मान्यता रखती है। वे न्याय के देवता माने जाते हैं और सभी प्राणियों के कर्मों का हिसाब रखने का कार्य करते हैं। श्री चित्रगुप्त जी को यमराज के सहयोगी भी कहा जाता है, जो मृत्यु के बाद जीवात्मा के अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं और उसके आधार पर न्याय प्रदान करते हैं। आरती के माध्यम से भक्तगण चित्रगुप्त जी को प्रणाम करते हैं और उनसे अपने जीवन के गलतियों के लिए क्षमा याचना करते हैं। इस आरती में उनके न्यायप्रियता, निष्पक्षता और दयालुता का बखान होता है, जो भक्तों के जीवन में सकारात्मकता और सद्गुणों का संचार करती है।
यह आरती विशेषकर कायस्थ समाज के लोगों द्वारा की जाती है, लेकिन किसी भी व्यक्ति को चित्रगुप्त जी की कृपा प्राप्त करने के लिए यह आरती कर सकते हैं। आरती में सरल और सहज शब्दों का प्रयोग किया गया है, जिससे हर भक्त इसका आनंद ले सकता है और चित्रगुप्त जी की महिमा का अनुभव कर सकता है। आरती में प्रभु की स्तुति और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना की जाती है ताकि उनके आशीर्वाद से सभी के जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का वास हो।
आरती
ॐ जय चित्रगुप्त हरे;
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे |
भक्तजनों के इच्छित;
फलको पूर्ण करे||
विघ्न विनाशक मंगलकर्ता;
सन्तनसुखदायी |
भक्तों के प्रतिपालक;
त्रिभुवनयश छायी ||
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…||
रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत;
पीताम्बरराजै |
मातु इरावती, दक्षिणा;
वामअंग साजै ||
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…||
कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक;
प्रभुअंतर्यामी |
सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन;
प्रकटभये स्वामी ||
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…||
कलम, दवात, शंख, पत्रिका;
करमें अति सोहै |
वैजयन्ती वनमाला;
त्रिभुवनमन मोहै ||
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…||
विश्व न्याय का कार्य सम्भाला;
ब्रम्हाहर्षाये|
कोटि कोटि देवता तुम्हारे;
चरणनमें धाये ||
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…||
नृप सुदास अरू भीष्म पितामह;
यादतुम्हें कीन्हा |
वेग, विलम्ब न कीन्हौं;
इच्छितफल दीन्हा ||
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…||
दारा, सुत, भगिनी;
सबअपने स्वास्थ के कर्ता |
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी;
तुमतज मैं भर्ता ||
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…||
बन्धु, पिता तुम स्वामी;
शरणगहूँ किसकी |
तुम बिन और न दूजा;
आसकरूँ जिसकी ||
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…||
जो जन चित्रगुप्त जी की आरती;
प्रेम सहित गावैं |
चौरासी से निश्चित छूटैं;
इच्छित फल पावैं ||
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…||
न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी;
पापपुण्य लिखते ||
‘नानक’ शरण तिहारे;
आसन दूजी करते ||
ॐ जय चित्रगुप्त हरे;
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे |
भक्तजनों के इच्छित;
फलको पूर्ण करे ||









