मंगल ग्रह विज्ञान और तकनीकी के विकास के साथ-साथ मनुष्य ने भी हमेशा से ब्रह्मांड में जीवन की खोज की है खास करके मंगल ग्रह को लेकर के जितने भी वैज्ञानिक है उनकी इसमें रुचि बड़ी है क्योंकि यह पृथ्वी के सबसे करीबी ग्रह में से एक ग्रह है हालांकि कुछ समय पहले NASA ने जेट प्रोपल्शन लैबोरेट्री के वैज्ञानिक ने एक नई रिसर्च को सामने लाया है जिसमें की बताया गया है की मंगल ग्रह के जरिए से अक्षांश क्षेत्र में जीवन के लिए संभावना मौजूद हो सकती है इस रिचार्ज में या खुलासा हुआ है कि वहां की जो बर्फ है उसके नीचे प्रकाश संश्लेषण के लिए उपयुक्त परिस्थितियां हो सकती हैं।
इस खोज से यह संकेत मिलता है कि मंगल ग्रह पर जीवन के संभावित संकेत मिल सकते हैं। खुल्लर के अनुसार मंगल की बर्फ सूर्य के हानिकारक रेडिएशन से बचाव कर सकती है, और यह वहां जीवन को पनपने के लिए आवश्यक प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को भी सहारा दे सकती है। हालांकि रिसर्च यह नहीं कहती कि मंगल पर निश्चित रूप से जीवन है। लेकिन यह साफ रूप से बताती है कि वैज्ञानिकों को खोज जारी रखनी चाहिए। यदि कहीं जीवन के प्रमाण मिल सकते हैं तो मंगल ग्रह एक जरूरी स्थान हो सकता है।
इंसानों की सदियों पुरानी खोज
प्राचीन काल से ही मनुष्य ने अपने आसपास के ब्रह्मांड में जीवन की संभावना को जानने की कोशिश की है। क्या हम इस विशाल ब्रह्मांड में अकेले हैं या कहीं और भी जीवन का अस्तित्व हो सकता है? यही सवाल हर वैज्ञानिक के दिमाग में घूमता रहा है। पृथ्वी के अलावा दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश में मानवता ने अब तक कई कदम उठाए हैं, और इसी क्रम में मंगल ग्रह का नाम हमेशा से सबसे आगे रहा है। मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना ने हमेशा से वैज्ञानिकों को आकर्षित किया है और NASA की हालिया रिसर्च इस दिशा में एक बड़ी उपलब्धि साबित हो सकती है।
नासा की नई रिसर्च में मिले संकेत
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA की जेट प्रपल्शन लैबोरेटरी (JPL) में काम कर रहे वैज्ञानिक आदित्य खुल्लर की हालिया रिसर्च ने इस बात के तगड़े संकेत दिए हैं कि मंगल ग्रह पर जीवन संभव हो सकता है। यह रिसर्च इस दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है क्योंकि इसमें यह बताया गया है कि मंगल ग्रह के मध्य अक्षांशों में स्थित धूल भरी बर्फ के नीचे जीवन के लिए उपयुक्त परिस्थितियां मौजूद हो सकती हैं। इन क्षेत्रों में प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) जैसी प्रक्रियाएं होने की संभावना जताई जा रही है, जो पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए जिम्मेदार रही हैं।
मंगल के मध्य अक्षांश क्षेत्रों का महत्व
खुल्लर की रिसर्च के अनुसार मंगल ग्रह के मध्य अक्षांश क्षेत्र जो कि ग्रह के 30 डिग्री से 60 डिग्री अक्षांश के बीच के इलाके हैं संभावित जीवन की खोज के लिए अहम साबित हो सकते हैं। इन क्षेत्रों में बर्फ की मोटी परतें पाई गई हैं जो जीवन के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं। माना जाता है कि इन इलाकों में सतह के नीचे मोटी पत्थर की परतों के बीच बड़ी मात्रा में पानी की बर्फ संरक्षित है। इस बर्फ के ऊपर धूल की परतों का होना सूर्य के खतरनाक रेडिएशन से बचाव करते हुए जीवन के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर सकता है।
प्रकाश संश्लेषण और मंगल पर जीवन की संभावना
प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से पृथ्वी पर पेड़-पौधे, शैवाल और कुछ बैक्टीरिया सूर्य के प्रकाश को ऊर्जा में बदलते हैं। इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड और पानी की मदद से ऑक्सीजन और ग्लूकोज का निर्माण होता है। पृथ्वी पर ऑक्सीजन का बड़ा स्रोत यही प्रक्रिया है जिसने जीवन को पनपने में मदद की। खुल्लर के अनुसार अगर मंगल ग्रह पर बर्फ की पर्याप्त मोटी परत सूर्य के रेडिएशन से बचाव कर सके और साथ ही वहां पर्याप्त प्रकाश संश्लेषण हो सके तो यह ‘रहने योग्य क्षेत्र’ बन सकता है।
यहां पर स्पष्ट करना जरूरी है कि यह रिसर्च अभी केवल संभावनाओं पर आधारित है। इसका मतलब यह नहीं है कि मंगल पर जीवन मौजूद है, लेकिन यह जरूर संकेत देती है कि वहां जीवन की खोज के लिए सही जगहें मौजूद हो सकती हैं।
मंगल पर जीवन की संभावना क्यों है इतनी प्रबल?
मंगल ग्रह, पृथ्वी की तरह सूर्य के ‘हैबिटेबल जोन’ में आता है। हैबिटेबल जोन वह क्षेत्र होता है जहां तापमान इतना संतुलित होता है कि पानी तरल अवस्था में रह सके। वैज्ञानिक मानते हैं कि पानी जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व है और जहां पानी है, वहां जीवन की संभावना भी हो सकती है।
मंगल ग्रह पर NASA के कई मिशनों ने इस बात के प्रमाण जुटाए हैं कि कभी इस ग्रह पर पानी मौजूद था। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि अरबों साल पहले मंगल का वातावरण बदलने और चुंबकीय क्षेत्र ढहने की वजह से यह पानी खत्म हो गया। इसके साथ ही ग्रह पर अल्ट्रावायलेट (UV) रेडिएशन का स्तर भी बहुत अधिक है जिससे वहां जीवन के अस्तित्व पर सवाल उठते हैं।
मंगल पर पानी का खत्म होना: एक रहस्य
मंगल पर पानी के सूख जाने का एक बड़ा कारण इसका चुंबकीय क्षेत्र का कमजोर होना है। वैज्ञानिकों के अनुसार जब किसी ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र ढह जाता है तो वह सूर्य की हानिकारक किरणों के खिलाफ अपनी सुरक्षा खो देता है। इसके बाद ग्रह की सतह से पानी धीरे-धीरे वाष्पित हो जाता है। यही वजह है कि आज मंगल ग्रह का अधिकतर हिस्सा सूखा पड़ा है और वहां केवल बर्फ के रूप में पानी मिलता है।
मंगल पर मौजूद ओजोन परत जैसी सुरक्षा की कमी के कारण धरती के मुकाबले यहां पर 30 प्रतिशत ज्यादा हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणें पाई जाती हैं। इससे वहां जीवन के पनपने में कठिनाई होती है लेकिन मध्य अक्षांश क्षेत्रों में मौजूद बर्फ की मोटी परतें इस UV रेडिएशन से बचाव कर सकती हैं।
भविष्य की दिशा: मंगल पर जीवन की खोज
खुल्लर की रिसर्च ने मंगल पर जीवन की खोज के लिए एक नई दिशा प्रदान की है। यह रिसर्च बताती है कि अगर कहीं जीवन मिल सकता है तो शायद यह बर्फ के नीचे छिपा हो सकता है। मंगल ग्रह की बर्फ की परतें न सिर्फ पानी के स्रोत के रूप में काम कर सकती हैं बल्कि यह रेडिएशन से बचाव के साथ-साथ पर्याप्त सूर्य का प्रकाश प्रदान कर सकती हैं जो जीवन के लिए जरूरी है।
NASA और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियां अब इस दिशा में और गहराई से शोध कर रही हैं। हो सकता है कि भविष्य में मंगल पर मानव के जरिए से भेजे गए मिशन इस बर्फ के नीचे जीवन के ठोस प्रमाण खोज सकें।
मेटा डिस्क्रिप्शन
NASA की नई रिसर्च ने मंगल ग्रह पर जीवन के संकेतों की खोज में एक बड़ा खुलासा किया है। वैज्ञानिकों के अनुसार मंगल के मध्य अक्षांशों में स्थित धूल भरी बर्फ के नीचे प्रकाश संश्लेषण के लिए उपयुक्त परिस्थितियां हो सकती हैं। जानें इस रिसर्च के मुख्य पहलू और कैसे ये संकेत मंगल पर जीवन की संभावनाओं को बढ़ाते हैं
Neha Patel is a content and news writer who has been working since 2023. She specializes in writing on religious news and other Indian topics. She also writes excellent articles on society, culture, and current affairs.