नई दिल्ली: ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के मुद्दे पर एक बार फिर बहस छिड़ी हुई है. केंद्रीय कैबिनेट ने ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ पर बनाई गई उच्च स्तरीय कमिटी की सिफ़ारिशों को मंज़ूर कर लिया है. अब केंद्र सरकार दावा कर रही है कि चुनाव सुधार की दिशा में ये अहम क़दम साबित होगा. वहीं विपक्षी पार्टियां इसमें खामियां गिना रही हैं.
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को संघीय ढांचे पर भी चोट बताती हैं. वो तर्क देती हैं, ”कैसे ये स्वीकार्य हो सकता है कि चुनी हुई सरकारें भंग कर दी जाएंगी. 2029 में जब ये होगा तो 17 ऐसी राज्य सरकारें होंगी, जिनके क़रीब-क़रीब दो या तीन साल बचे रहेंगे. तो उन सरकारों को भंग करने का अधिकार आपको किसने दिया? क्या यह जनादेश का अपमान नहीं है?”
उपेंद्र कुशवाहा इसे नकारते हैं. वो कहते हैं कि संघीय ढांचे पर प्रहार का तो कोई सवाल ही नहीं है.”आप अभी जिस संघीय ढांचे की बात कर रहे हैं, वह हमारे संवैधानिक प्रावधानों के कारण है. तो संविधान के अनुसार, अगर कहीं संशोधन की ज़रूरत होगी, तो संशोधन करना पड़ेगा.”
कुशवाहा कहते हैं, ”संघीय ढांचे पर कहीं से प्रहार नहीं है, सबको यह बात स्वीकार होगी. ठीक है, राजनीतिक रूप से हम अगर विपक्ष में हैं, तो सत्ता की पार्टी कुछ भी करे, भले ही अच्छा भी काम करें, हमें विरोध करना है. यह सोचकर अगर विरोध करना हो, तो यह एक अलग बात है.”
”विपक्ष को चाहिए कि सरकार से मांग करे कि आप सर्वदलीय बैठक बुलाइए और उसमें आप हमारी राय भी जानिए. अगर इसमें कुछ जोड़ना हो या हटाना हो, कीजिए. तो मेरे ख्याल से इस पर ज़ोर देना चाहिए.”
कमिटी के प्रस्तावों के मुताबिक़ भारत में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करने के लिए दो बड़े संविधान संशोधन की ज़रूरत होगी. इसके तहत पहले संविधान के अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन करना होगा.

Author: Ujala Sanchar
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