वाराणसी : पं. दीनदयाल उपाध्याय राजकीय बालिका महाविद्यालय में हिन्दी विभाग द्वारा ‘साहित्य की सामाजिकता’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रख्यात साहित्यकार प्रो श्री प्रकाश शुक्ल ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा की समाज को छोड़कर साहित्य का स्वाभाविक चिंतन संभव नहीं है।
बीएचयू के युवा समालोचक डॉ. विंध्याचल यादव ने आलोचना के नये और पुराने प्रतिमानों की पुनर्व्याखया कर कहा की साहित्य साहित्यकार के जीवन का हिस्सा होता है, जिस समाज का आलोचक होता है, आलोचना उसी के अनुकूल चल पड़ती है। डॉ. सुचिता वर्मा ने काव्य और समाज के अन्तर्सम्बन्धों को बताया और भक्तिकालीन कवियित्री मीरा को सामंतवादी सोच का विरोधी बताया।

महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो सुधा पाण्डेय ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में साहित्य और समाज के आदर्शात्मक फलक को रेखांकित किया। इसके साथ ही राजकीय महाविद्यालय धानापुर चंदौली के प्राध्यापक प्रवेश कुमार, वन्दना, मुन्ना, विशाल, लक्ष्मण, रीता मौर्य सहित दर्जनों शोधकर्ताओं ने अपने अपने शोध पत्र का वाचन किया।
हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो कमलेश कुमार वर्मा ने विषय प्रवर्तन और कार्यक्रम का संचालन किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रो राम कृष्ण गौतम ने किया। इस अवसर पर प्रो रविप्रकाश गुप्ता, प्रो सत्यनारायण वर्मा, प्रो अर्चना गुप्ता, डॉ घनश्याम कुशवाहा, डॉ कमलेश कुमार सिंह, डॉ सौरभ सिंह, गीता रानी शर्मा, डॉ सुष्मिता और डॉ सुधा तिवारी सहित तमाम लोग मौजूद रहे।

Author: Ujala Sanchar
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