वॉशिंगटन: दुनिया की सबसे बड़ी अंतरिक्ष प्रयोगशालाओं में से एक, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) को अब प्रशांत महासागर में गिराने की तैयारी की जा रही है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने हाल ही में इस ऐतिहासिक फैसले की पुष्टि की है।
करीब एक फुटबॉल मैदान के आकार की यह कक्षा प्रयोगशाला साल 1998 में लॉन्च की गई थी। बीते 25 वर्षों में 26 देशों के एस्ट्रोनॉट्स ने इसमें काम किया है और यह मानवता के सबसे बड़े वैज्ञानिक सहयोगों में से एक का प्रतीक रहा है।
ISS को समुद्र में क्यों गिराया जा रहा है?
NASA के मुताबिक, ISS का प्राइमरी स्ट्रक्चर अब धीरे-धीरे पुराना और क्षतिग्रस्त होता जा रहा है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि 2030 के बाद इसका संचालन जोखिम भरा हो सकता है। ऐसे में, स्पेस डेब्रिस (अंतरिक्ष कचरा) को नियंत्रित करने और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए NASA ने इसे नियंत्रित तरीके से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करवाकर प्रशांत महासागर में गिराने का फैसला लिया है।
प्रशांत महासागर में कहां गिरेगा ISS?
ISS को “Point Nemo” (पृथ्वी का सबसे दूरस्थ स्थान) के पास गिराया जाएगा। यह स्थान दक्षिण प्रशांत महासागर में है और किसी भी मानव बस्ती से हजारों किलोमीटर दूर है। यही कारण है कि इसे अंतरिक्ष कबाड़ के लिए सबसे सुरक्षित डंपिंग ज़ोन माना जाता है।
ISS: विज्ञान और सहयोग की मिसाल
- 1998 में लॉन्च किया गया ISS, अमेरिका, रूस, जापान, कनाडा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियों के साझा प्रयास का परिणाम है।
- इस पर सैकड़ों वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं, जिनमें दवाओं, माइक्रोग्रैविटी, पर्यावरण और अंतरिक्ष जीवन से जुड़े अहम शोध शामिल हैं।
अब आगे क्या?
NASA और उसके सहयोगी देश अब नई पीढ़ी के स्पेस स्टेशन पर काम कर रहे हैं। NASA का फोकस अब चंद्रमा और मंगल मिशनों पर शिफ्ट हो रहा है। वहीं, कई प्राइवेट कंपनियां जैसे SpaceX और Blue Origin, भविष्य में कमर्शियल स्पेस स्टेशन विकसित करने की तैयारी में हैं।










