वाराणसी: धर्म एवं आध्यात्म की नगरी काशी अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इस धार्मिक नगरी की धरोहर में एक महत्वपूर्ण स्थान “नाग नथैया लीला” का भी है, जो हर साल तुलसी घाट पर आयोजित होती है। यह लीला भगवान श्रीकृष्ण की उस अद्भुत कथा पर आधारित है, जिसमें उन्होंने कालिया नाग का मर्दन कर यमुना नदी के जल को शुद्ध किया था। यह परंपरा लगभग 500 साल पुरानी है, जिसे महान संत गोस्वामी तुलसीदास ने आरंभ किया था। इस लीला का आयोजन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन होता है और इसे देखने के लिए हजारों श्रद्धालु वाराणसी में एकत्रित होते हैं।
नाग नथैया लीला का पौराणिक संदर्भ
नाग नथैया लीला भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में से एक प्रमुख घटना पर आधारित है। कथा के अनुसार, यमुना नदी का जल कालिया नाग के विष से दूषित हो गया था, जिससे जलचरों, पक्षियों और आसपास के पेड़ों पर भी इसका असर पड़ रहा था। एक दिन खेल-खेल में श्रीकृष्ण की गेंद यमुना में चली गई। उसे निकालने के लिए श्रीकृष्ण यमुना में कूद पड़े और उनका सामना कालिया नाग से हुआ। भगवान ने कालिया नाग को पराजित कर उसके फन पर बांसुरी बजाई और अंत में उसे यमुना छोड़कर जाने का आदेश दिया। इस घटना के बाद यमुना का जल फिर से शुद्ध हो गया, और वृंदावन के लोग भगवान श्रीकृष्ण की जय-जयकार करने लगे। वाराणसी के तुलसी घाट पर हर साल इस घटना का मंचन किया जाता है, जिसे नाग नथैया लीला के नाम से जाना जाता है। यह आयोजन काशी की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का अभिन्न हिस्सा बन गया है।
बाल रूप में होते हैं भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन
घाटों, नावों और आसपास की छतों पर हजारों की संख्या में भक्त इस अद्भुत लीला को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं। लोग इस आयोजन को बेहद श्रद्धा और भक्ति भाव से देखते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का आनंद लेते हैं।
लीला का ऐतिहासिक महत्व
नाग नथैया लीला का इतिहास 500 साल पुराना है। इसकी शुरुआत गोस्वामी तुलसीदास ने की थी, जो रामचरितमानस के रचयिता भी थे। तुलसीदास ने काशी में कई धार्मिक लीलाओं की परंपरा को पुनर्जीवित किया था, जिसमें नाग नथैया लीला का विशेष स्थान है। उन्होंने इस लीला के माध्यम से समाज में धर्म और संस्कारों का प्रचार किया और लोगों को एकत्रित करने के लिए धार्मिक लीलाओं का सहारा लिया। इस लीला में सभी धर्मों और जातियों के लोग बिना भेदभाव के भाग लेते हैं। कलाकारों का चयन वाराणसी के अस्सी घाट और भदैनी क्षेत्र से किया जाता है, जो भगवान श्रीकृष्ण, बलराम, और राधा के रूप में मंचन करते हैं।
नाग नथैया लीला की खासियत इसके विभिन्न प्रतीकों और अनुष्ठानों में है। हर साल संकट मोचन मंदिर के जंगल क्षेत्र से कदंब के पेड़ की एक डाली ली जाती है, जिसे लीला में उपयोग किया जाता है। लीला खत्म होने के बाद वहां पर एक नया कदंब का पौधा लगाया जाता है, जो पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बनता है। कालिया नाग के विशाल फन को रंग-बिरंगे कपड़ों और लाइट्स से सजाकर उसे दुष्टता का प्रतीक माना जाता है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण मर्दित करते हैं।
काशीराज परिवार की परंपरा
नाग नथैया लीला के दौरान काशी के काशीराज परिवार की उपस्थिति इस आयोजन को और भी महत्वपूर्ण बना देती है। काशीराज परिवार के सदस्य भगवान श्रीकृष्ण का माल्यार्पण और आरती करते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, और काशीराज परिवार के प्रतिनिधि डॉ. अनंत नारायण सिंह हर साल इस लीला में सम्मिलित होते हैं।
नदियों के संरक्षण का संदेश
नाग नथैया लीला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह समाज को जल प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने का भी एक माध्यम है। जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना के जल को शुद्ध किया, उसी प्रकार यह लीला हमें वर्तमान समय में नदियों की स्वच्छता और संरक्षण की आवश्यकता की याद दिलाती है। यह आयोजन समाज में एकता और समरसता का भी संदेश देता है, क्योंकि इसमें हर वर्ग, जाति, और धर्म के लोग एक साथ शामिल होते हैं।
देती है बड़ी सीख
हालांकि यह लीला सदियों पुरानी है, फिर भी आज के समय में इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। यह हमें यह सिखाती है कि चाहे कितनी भी कठिनाई आए, यदि हमारे साथ ईश्वर का आशीर्वाद है, तो हर संकट का सामना किया जा सकता है। साथ ही, यह लीला समाज में व्याप्त जाति और धर्म के भेदभाव को मिटाकर एक समरस और एकजुट समाज की स्थापना का प्रतीक भी है।
इस दिन आयोजित होगी लीला
नाग नथैया लीला हर साल दीपावली के चार दिन बाद, कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तुलसी घाट पर आयोजित होती है। इस साल यह लीला 5 नवंबर 2024, मंगलवार को होगी। इस आयोजन को देखने के लिए वाराणसी और आसपास के क्षेत्रों से हजारों की संख्या में भक्त और पर्यटक आते हैं। यह आयोजन काशी के चार लक्खा मेलों में से एक है, जिसमें लाखों लोग भाग लेते हैं।
नाग नथैया लीला वाराणसी की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। यह आयोजन न केवल भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का जीवंत मंचन है, बल्कि यह हमें पर्यावरण संरक्षण और जल स्वच्छता के महत्व की भी याद दिलाता है। इस लीला के माध्यम से हम यह भी सीखते हैं कि कठिनाइयों का सामना धैर्य और साहस से करना चाहिए, और जब हमारे साथ भगवान का आशीर्वाद हो, तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।
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