नई दिल्ली। भारतीय राजनीति के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले लगभग 20 वर्षों से विदेशी धरती पर कदम नहीं रखते – यह विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। उनकी आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, 2006 के बाद उन्होंने न तो कोई सरकारी विदेशी दौरा किया है और न ही निजी यात्रा।
विदेश यात्रा से दूरी – क्या कहती है पृष्ठभूमि?
- दूरी का राजनीतिक अर्थ
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शाह इस रणनीति को जानबूझकर अपना चुके हैं ताकि एक गहरी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की छवि बनाई जा सके। उनकी यह छवि उन कोर वोटरों में पसंदीदा है जो कट्टर देशभक्ति और “स्वदेशी” नेतृत्व को महत्व देते हैं। कुछ विश्लेषकों यह भी कहने लगे हैं कि शाह ने अनौपचारिक रूप से यह प्रण किया है कि जब तक वे प्रधानमंत्री नहीं बन जाते, तब तक वे विदेश नहीं जाएंगे – ताकि वे खुद को “पूरी तरह भारत-मां की सेवा में समर्पित” दिखा सकें। - तुलना प्रधान मंत्री मोदी और पूर्व गृह मंत्री राजनाथ सिंह से
यह रवैया नरेंद्र मोदी की विदेश-प्रवृत्ति से उन्हें अलग पहचान देता है। जबकि मोदी लगातार अंतरराष्ट्रीय दौरों पर जाते हैं, शाह का फोकस देश के आंतरिक सुरक्षा और संगठनात्मक मोर्चों पर रहा है। ऐसा माना जाता है कि यह उनकी प्राथमिकता रही है – पार्टी और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूती देना। उनके पूर्ववर्ती गृह मंत्री राजनाथ सिंह की तुलना में भी यह असामान्य है। राजनाथ सिंह ने गृह मंत्री रहते कई देशों की यात्राएं की थीं, लेकिन शाह की विदेश-महत्वाकांक्षा न्यून रही।
आलोचना और सवाल
- लोकतांत्रिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से
उनके आलोचक कहते हैं कि एक ऐसे नेता, जो देश के अंदरूनी सुरक्षा मामलों को देखता है, उसके लिए विदेश संपर्क कम होना भारत की कूटनीतिक छवि और नेटवर्किंग को हानि पहुंचा सकता है। - इमेज मैनेजमेंट या रणनीतिक प्रतिबद्धता?
कुछ लोग मानते हैं कि यह सिर्फ इमेज मैनेजमेंट है – “देशभक्ति की रणनीति” – न कि असल प्रतिबद्धता का निर्णय। जबकि अन्य इसे उनके बहु-दायित्वों और “भारत की सेवा” में व्यक्तिगत बलिदान की निशानी मानते हैं।






