वाराणसी: विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के बैनर तले चल रहा निजीकरण विरोधी आंदोलन 257वें दिन भी जारी रहा। बनारस में बिजली कर्मचारियों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन करते हुए सभी बिजली कार्यालयों पर अपनी एकता का प्रदर्शन किया।

संघर्ष समिति ने बताया कि प्रदेश के सभी सांसदों और विधायकों को पत्र भेजकर मांग की गई है कि उत्तर प्रदेश में निजीकरण का विफल प्रयोग गरीब जनता पर न थोपा जाए और ग्रेटर नोएडा व आगरा की बिजली वितरण व्यवस्था को पुनः पावर कारपोरेशन के अधीन किया जाए।
केंद्रीय पदाधिकारियों ने कहा कि ओडिशा और अन्य राज्यों में बिजली निजीकरण विफल साबित हुआ है। यूपी में ग्रेटर नोएडा और आगरा में निजीकरण से पावर कारपोरेशन को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। आगरा में टोरेंट पावर कंपनी को महंगी दर पर खरीदी गई बिजली सस्ते में बेची जा रही है, जिससे 2023-24 में ही निगम को लगभग 1000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ, जबकि कंपनी को भारी मुनाफा हुआ।
पत्र में यह भी उल्लेख है कि 2010 में आगरा में बिजली राजस्व का ₹2200 करोड़ बकाया था, जिसे वसूल कर पावर कारपोरेशन को लौटाना था, लेकिन 15 वर्षों में एक पैसा भी वापस नहीं किया गया। इसके बावजूद निगम ने एग्रीमेंट निरस्त करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की।
ग्रेटर नोएडा में नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड पर ग्रामीण और घरेलू उपभोक्ताओं को निर्धारित शेड्यूल के अनुसार बिजली न देने का आरोप है। इसी मामले में सरकार सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ रही है।
संघर्ष समिति ने उदाहरण देते हुए कहा कि ओडिशा, उज्जैन, ग्वालियर, रांची, नागपुर सहित कई शहरों में भी अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी मॉडल विफल हो चुका है।
अंत में समिति ने सांसदों और विधायकों से मांग की कि वे पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय निरस्त कराने के लिए पहल करें।
सभा को ई. मायाशंकर तिवारी, अंकुर पांडेय, ई. एस.के. सिंह, ई. नीरज बिंद, ई. विकास कुशवाहा, ई. अमर पटेल सहित कई पदाधिकारियों ने संबोधित किया।









