त्रेतायुग में जब धरती पर अधर्म और अत्याचार बढ़ने लगे, तब भगवान गणेश ने मयूरेश्वर के रूप में अवतार लिया। इस अवतार का उद्देश्य महाबली दैत्यराज सिन्धु के आतंक से पृथ्वी को मुक्त कराना था। महादैत्य सिन्धु ने कठोर तपस्या कर सूर्य देव से वरदान प्राप्त किया और इसके बाद वह अहंकार में चूर हो गया। उसने अपनी दानवी शक्ति का उपयोग कर न्याय और धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों को पीड़ित करना शुरू कर दिया। उसकी क्रूरता इतनी बढ़ गई थी कि वह बिना कारण ही नर-नारियों, बच्चों और अनाथों की हत्या करने लगा। इसके अत्याचार से पृथ्वी पर रक्त की नदियां बहने लगीं।
देवताओं की प्रार्थना और भगवान गणेश का प्रकट होना
सिन्धु के आतंक से मुक्ति पाने के लिए सभी देवता देवगुरु बृहस्पति की शरण में गए। बृहस्पति ने उन्हें संकष्टी चतुर्थी व्रत का अनुष्ठान करने और भगवान गणेश का स्मरण करने का उपाय बताया। देवताओं ने विधिपूर्वक व्रत किया और भगवान गणेश प्रकट हुए। उन्होंने देवताओं को आश्वासन दिया कि वे माता पार्वती के पुत्र के रूप में अवतरित होकर धरती का भार उतारेंगे।
माता पार्वती की तपस्या और मयूरेश्वर का जन्म
भगवान गणेश के अवतार की इच्छा लिए माता पार्वती ने भगवान शिव के उपदेशानुसार ‘ग’ बीज मंत्र का जप करना शुरू किया। कुछ समय बाद भाद्रपद मास की शुक्ला चतुर्थी को शुभ नक्षत्रों में भगवान गणेश का दिव्य रूप में अवतरण हुआ। उन्होंने माता पार्वती से पुत्र रूप में दर्शन देने की विनती की। सर्वसमर्थ गणेश ने स्फटिक मणि के समान तेजस्वी षड्भुज रूप में माता को दर्शन दिए। इस अद्वितीय शिशु का नाम मयूरेश्वर रखा गया।
महादैत्य सिन्धु का अंत
मयूरेश्वर के जन्म की खबर जब सिन्धु को मिली, तो वह अत्यन्त भयभीत हो गया। उसने बालक गणेश को मारने के लिए अनेक असुरों को भेजा, लेकिन भगवान गणेश ने सबको मार गिराया। उन्होंने दुष्ट वृकासुर और कुत्ते के रूप में आए नूतन नामक दैत्य का भी वध किया। इसके बाद कमलासुर की बारह अक्षौहिणी सेना को नष्ट कर त्रिशूल से उसका मस्तक काटकर भीमा नदी के तट पर फेंक दिया। सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान गणेश ने वहां मयूरेश्वर (मोरेश्वर) के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त की।
अन्तिम युद्ध और सिन्धु का पतन
जब सिन्धु ने सभी देवताओं को अपने कारागार में बंदी बना लिया, तब भगवान गणेश ने उसे ललकारा। भयंकर युद्ध हुआ जिसमें असुरों की सेना पराजित हो गई। सिन्धु के पुत्र धर्म और अधर्म भी इस युद्ध में मारे गए। कुपित होकर मायावी दैत्यराज सिन्धु ने भगवान मयूरेश्वर पर अनेक अस्त्र-शस्त्रों से प्रहार किया, लेकिन सर्वशक्तिमान गणेश के लिए यह सब व्यर्थ था। अंततः मयूरेश्वर के परशु प्रहार से महादैत्य सिन्धु निश्चेष्ट होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसे दुर्लभ मुक्ति प्राप्त हुई।
देवताओं की स्तुति और भगवान मयूरेश्वर की वापसी
सिन्धु के वध के बाद देवताओं ने भगवान मयूरेश्वर की स्तुति की। उन्होंने सभी को आनंद, सुख और शांति प्रदान की। अंत में अपनी लीला समाप्त कर भगवान मयूरेश्वर ने परमधाम की ओर प्रस्थान किया। इस प्रकार, भगवान गणेश ने मयूरेश्वर अवतार के रूप में पृथ्वी को दुष्टों के आतंक से मुक्त कर सभी का कल्याण किया।

Author: Ujala Sanchar
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