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मिर्जापुर: विज्ञान को चुनौती देता “बेचूबीर का मेला”, मनरी वाद्य बजने के साथ तीन दिवसीय मेला संपन्न

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मिर्जापुर: जनपद के अहरौरा नगर के दक्षिणी छोर से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम सभा बरही में आयोजित तीन दिवसीय अंतरप्रांतीय ऐतिहासिक “बेचूबीर मेला” का समापन परंपरागत मनरी वाद्य बजने के साथ हुआ। श्रद्धा और आस्था का यह अनोखा संगम विज्ञान की सीमाओं को भी चुनौती देता प्रतीत होता है।

यह मेला जनपद का सबसे बड़ा अंतरप्रांतीय धार्मिक मेला माना जाता है, जहां हर वर्ष भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति, पुत्र प्राप्ति, और घर-परिवार में सुख-शांति की कामना लेकर लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस बार के मेले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार से लगभग चार से पाँच लाख श्रद्धालु पहुंचे।

बेचूबीर बाबा की कथा

स्थानीय मान्यता के अनुसार, सैकड़ों वर्ष पहले बरही गांव में बेचू यादव नामक व्यक्ति रहते थे। चारों ओर जंगल से घिरे इस क्षेत्र में एक दिन वे भैंस चराने गए, तभी उन पर एक शेर ने हमला कर दिया। लंबे संघर्ष के बाद बेचू यादव और शेर दोनों घायल हो गए। किसी तरह वे घर पहुंचे और वहीं उनकी मृत्यु हो गई।

किवदंती है कि मृत्यु से पूर्व आकाशवाणी हुई — “जो भी मेरे समाधि स्थल पर माथा टेकेगा, उसकी मनोकामना पूरी होगी।”
तब से ही उनके समाधि स्थल को ‘बेचूबीर चौरी’ के नाम से जाना जाता है। जब उनकी पत्नी बरहिया माता को उनके निधन की सूचना मिली, तो उन्होंने अपनी 12 दिन की पुत्री सहित सती हो गईं।

मेले की परंपरा और अनुष्ठान

मान्यता के अनुसार, श्रद्धालु भक्सी नदी में स्नान कर पुराने वस्त्र वहीं छोड़ते हैं और नए वस्त्र धारण कर चौरी के दर्शन को जाते हैं। कई भक्त छोटे बकरे के बच्चे (लैम्ब) को चौरी पर चढ़ाकर वहीं छोड़ देते हैं, जिसे ‘बेचूबीर बाबा की भेंट’ कहा जाता है।

मेले का समापन एकादशी की भोर चार बजे विशेष मनरी वाद्य की ध्वनि के साथ होता है। पुजारी द्वारा पूजा-अर्चना कर श्रद्धालुओं को “अक्षत (चावल का दाना)” प्रसाद के रूप में दिया जाता है, जिसे लोग आशीर्वाद मानकर घर ले जाते हैं।

आस्था बनाम विज्ञान

विज्ञान के युग में जहां इंसान चांद पर बस्ती बसाने की तैयारी कर रहा है, वहीं बरही गांव में आस्था का यह मेला आज भी उतनी ही श्रद्धा से जीवित है। यहां आने वाली महिलाएं भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति और संतान प्राप्ति की कामना लेकर दूर-दूर से आती हैं।

चाहे इसे अंधविश्वास कहा जाए या आस्था, लेकिन यह निर्विवाद है कि बेचूबीर बाबा का मेला ग्रामीण जनमानस की आस्था, परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत संगम है — जो विज्ञान की तर्क सीमा से परे, विश्वास की गहराई में डूबा हुआ प्रतीत होता है।

रिपोर्ट – अनुप कुमार

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