राहुल गांधी के कुछ बयान पिछले दिनों देशभर में चर्चा का विषय बन गए हैं। इनमें मुख्य रूप से धर्म, चुनावी प्रक्रिया और आरक्षण को लेकर दिए गए बयान शामिल हैं। खासकर आरक्षण पर दिया गया बयान, जिसे लेकर कहा जा रहा है कि यह वही आरक्षण कार्ड है जिसने 2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार बहुमत पाने से रोक दिया।
कबीर दास की ये वाणी “जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान” वाराणसी के करीब जन्मे संत की समझ की ओर इशारा करती है। अगर राहुल गांधी इस वाणी को आत्मसात कर लेते तो शायद जाति की राजनीति में उनका इतना जोर नहीं रहता। इस समय राहुल गांधी अमेरिका में आरक्षण खत्म करने की टाइमलाइन बताने के बयान को लेकर विवादों में घिरे हैं। उन्होंने सिखों और आरएसएस जैसे कई मुद्दों पर भी टिप्पणियाँ की हैं, जिसने भारतीय जनता पार्टी को नाराज कर दिया है। लोकसभा में विपक्ष के नेता बनने के बाद यह राहुल का पहला अमेरिकी दौरा है, और उनके बयान से देश में राजनीतिक बवंडर छिड़ गया है।
कास्ट पॉलिटिक्स और आरक्षण: राहुल गांधी के आरोप
भारत की राजनीति में जातिगत राजनीति एक बार फिर से उभर रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष ने यह नैरेटिव बनाया कि बीजेपी सत्ता में आने पर संविधान में बदलाव कर आरक्षण को खत्म कर देगी। इस नैरेटिव को चुनावी मुद्दा बनाकर प्रचारित किया गया। राहुल गांधी ने बार-बार दावा किया कि वे संविधान और आरक्षण व्यवस्था की हर हाल में रक्षा करेंगे।
वहीं, चुनाव के बाद जाति और आरक्षण का मुद्दा संसद में भी गूंजा। जब बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी की जाति पर सवाल उठाया, तो इस पर संसद में घमासान मच गया। यह घटना बताती है कि जातिगत राजनीति का प्रभाव सिर्फ चुनावों तक सीमित नहीं है बल्कि इसके प्रभाव संसद तक पहुंच चुके हैं।
आरक्षण खत्म करने की डेडलाइन: राहुल का बयान
पूरे चुनाव में राहुल गांधी ने आरक्षण के मुद्दे को उभारते हुए अपनी हर रैली में संविधान की कॉपी लेकर भाषण दिया। वे जब सांसद के तौर पर शपथ लेने गए तब भी उनके हाथों में संविधान की कॉपी दिखाई दी। अमेरिकी दौरे पर जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी में जब उनसे भारत में आरक्षण कब तक चलेगा, इस पर सवाल किया गया तो उनके उत्तर ने भारत में बखेड़ा खड़ा कर दिया।
राहुल ने कहा, “जब भारत में सब समान होंगे, तभी हम आरक्षण खत्म करने के बारे में सोच सकते हैं।” इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में तूफान मच गया। मायावती और बीजेपी ने राहुल गांधी पर आरक्षण को लेकर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाया। कांग्रेस को 99 सीटों तक पहुंचाने में आरक्षण का बड़ा योगदान माना जाता है, लेकिन राहुल के इस बयान ने राजनीतिक विरोधियों को उन पर हमले करने का मौका दे दिया।
राहुल गांधी की जाति: नेहरू परिवार से जुड़े सवाल
राहुल गांधी की जातिगत पहचान को लेकर भी लंबे समय से चर्चा होती रही है। कई बार यह सवाल उठाया जाता है कि आखिर राहुल गांधी की जाति क्या है? उनके पिता राजीव गांधी पारसी पिता फिरोज गांधी के बेटे थे, जो सेक्युलर मूल्यों को अपनाते थे। भारतीय समाज में जाति आमतौर पर पिता के नाम से तय होती है। इसलिए फिरोज गांधी के पैमाने पर देखा जाए तो राहुल गांधी पारसी हो सकते हैं।
लेकिन जब राजस्थान चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने जनेऊ पहनकर खुद को नेहरू परिवार से जोड़ा, तो इस पर भी राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू का जो गोत्र था, वही गोत्र राहुल गांधी का भी बताया गया। नेहरू परिवार के पुरोहित ने बताया कि राहुल का गोत्र दत्तात्रेय कौल ब्राह्मण है। इस तरह राहुल ने खुद को ब्राह्मण जाति से जोड़कर अपनी राजनीतिक पहचान को नया आयाम दिया।
फिरोज गांधी की कब्र और गांधी-नेहरू परिवार का संबंध
राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी और उनके भाई संजय गांधी फिरोज और इंदिरा गांधी की संतान हैं। फिरोज गांधी का जन्म 12 सितंबर 1912 को पारसी परिवार में हुआ था। फिरोज गांधी ने 8 सितंबर 1960 को अंतिम सांस ली। उनके अंतिम संस्कार के समय कुछ पारसी परंपराओं का पालन किया गया, लेकिन अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से किया गया था। फिरोज की अस्थियों को संगम में प्रवाहित किया गया और कुछ अस्थियां कब्र में दफना दी गईं।
प्रयागराज में स्थित इस कब्रिस्तान की देखभाल की जिम्मेदारी चौकीदार पर है। यह कब्रिस्तान अब जर्जर स्थिति में है, और परिवार का कोई सदस्य पिछले लंबे समय से यहां नहीं आया है। 2019 में यहां के चौकीदार ने बताया था कि राहुल गांधी ने 10 साल पहले इस मजार पर फूल चढ़ाए थे।

Author: Ujala Sanchar
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