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बीएचयू संगोष्ठी में वक्ताओं ने रखे अपने विचार, राष्ट्रवादी कविता और सांस्कृतिक चेतना पर विमर्श 

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वाराणसी: ‘हिन्दी राष्ट्रवादी कवियों की साहित्यिक-सामाजिक विरासत: सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सन्दर्भ में’ विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन बीएचयू के शताब्दी कृषि प्रेक्षागृह में हुआ। कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों में विद्वानों ने राष्ट्रवादी कविता और सांस्कृतिक चेतना पर गहन विचार-विमर्श किया।

दूसरे दिन के सत्र की अध्यक्षता प्रो. विजय कुमार शाण्डिल्य ने की। उन्होंने तुलसीदास की काव्य चेतना को राष्ट्रीय संदर्भ में व्याख्यायित किया। विशाखापट्टनम से आईं प्रो. जे विजया भारती ने भाषाई सौहार्द पर प्रकाश डाला, जबकि डॉ. किंगसन सिंह पटेल ने राष्ट्रवादी कविता में महिलाओं की भूमिका रेखांकित की।

राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा: विविध स्वर’ विषयक सत्र में प्रो. विनय कुमार सिंह ने राष्ट्रवादी कविताओं की ऐतिहासिकता पर चर्चा की। डॉ. सुशील यादव ने ‘भारत-भारती’ और ‘पुष्प की अभिलाषा’ जैसी कविताओं का उदाहरण देते हुए स्वतंत्रता संग्राम में कविता के योगदान को रेखांकित किया। डॉ. शुभांगी श्रीवास्तव ने कहा कि राष्ट्रवादी कविता संकीर्ण विचारधारा तक सीमित नहीं होनी चाहिए और इसे समावेशी दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।

समापन सत्र में मुख्य अतिथि प्रो. सत्यकाम ने कहा कि राष्ट्रवादी कविता केवल वीर रस तक सीमित नहीं है। उन्होंने निराला और केदारनाथ सिंह की कविताओं के माध्यम से साझा भारतीय मूल्यों की ओर ध्यान आकर्षित किया।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला संकाय प्रमुख प्रो. मायाशंकर पाण्डेय ने भारतीय और जापानी राष्ट्रवाद की तुलना करते हुए अहिंसा पर आधारित भारतीय राष्ट्रवाद की विशिष्टता को रेखांकित किया। संगोष्ठी के समापन पर जस्टिस गिरिधर मालवीय को श्रद्धांजलि दी गई। संगोष्ठी ने राष्ट्रवादी काव्यधारा के विविध पक्षों को उजागर किया और इसे समकालीन समाज में प्रासंगिक बनाए रखने का आह्वान किया।

Ujala Sanchar
Author: Ujala Sanchar

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