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काशी में श्रद्धा और परंपरा का अनुपम संगम: भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में उमड़ा आस्था का सैलाब

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वाराणसी: धर्म और संस्कृति की राजधानी काशी एक बार फिर भक्ति के रंग में रंग गई, जब शुक्रवार की भोर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की भव्य रथयात्रा का शुभारंभ हुआ। वाराणसी के ऐतिहासिक रथयात्रा चौराहा इस अवसर पर श्रद्धा का केंद्र बना रहा, जहां हजारों भक्तों की मौजूदगी में रथयात्रा मेले की शुरुआत हुई।

करीब 200 वर्षों पुरानी इस परंपरा को भक्तों ने पूरे श्रद्धा भाव से निभाया। मान्यता के अनुसार, 15 दिनों की ‘अनवश्र’ (बीमारी की अवधि) के बाद भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं। इसी उपलक्ष्य में इस पर्व को रथयात्रा मेला कहा जाता है, जिसमें भक्त भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन कर स्वयं को धन्य मानते हैं।

सुबह सबसे पहले भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मंगल आरती संपन्न हुई, जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। इसके बाद भक्तों ने पूरे उत्साह के साथ रथ को खींचकर यात्रा की शुरुआत की। “जय जगन्नाथ” और “हर हर महादेव” के उद्घोष से वातावरण भक्तिमय हो गया।

हालांकि रथयात्रा का मुख्य आयोजन ओडिशा के पुरी में होता है, लेकिन काशी में यह पर्व पुरी ट्रस्ट के सहयोग से वर्षों से आयोजित किया जा रहा है। यहां भी पुरी की तरह पारंपरिक विधियों से रथयात्रा निकाली जाती है, जिससे वे श्रद्धालु जो पुरी नहीं जा पाते, काशी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर पुण्य अर्जित करते हैं।

जनश्रुति के अनुसार, रथयात्रा के दिन भगवान अपने भाई-बहन के साथ मौसी के घर जाते हैं। इस मान्यता के अनुसार तीन दिनों तक रथयात्रा स्थल पर विशेष पूजा, धार्मिक अनुष्ठान और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है।

इस दौरान भक्त भगवान के रथ को खींचने को परम सौभाग्य मानते हैं। भगवान जगन्नाथ को तुलसी अत्यंत प्रिय मानी जाती है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि रथयात्रा के दिन भगवान को तुलसी अर्पित करने से छप्पन भोग के समान पुण्य प्राप्त होता है। इसीलिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु तुलसी पत्र अर्पित करते हुए देखे गए।

रथयात्रा के अवसर पर तीन दिनों तक विशाल मेला भी आयोजित किया जाता है, जिसमें वाराणसी और आसपास के क्षेत्रों से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। भक्तों का मानना है कि इन तीन दिनों में भगवान के दर्शन मात्र से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

Ujala Sanchar
Author: Ujala Sanchar

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