वाराणसी: तहसील सदर में व्याप्त भ्रष्टाचार और शासनादेशों के खुले उल्लंघन को लेकर अधिवक्ताओं में गहरा आक्रोश है। अधिवक्ताओं ने आरोप लगाया है कि तहसील सदर में कामकाज पूरी तरह घूसखोरी और मनमानी पर आधारित हो गया है, जिससे आम जनता को न्याय और राहत पाने में गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
अधिवक्ताओं का कहना है कि लेखपाल और कानूनगो समय पर रिपोर्ट नहीं लगाते, जिससे दाखिल-खारिज के मामले महीनों या सालों तक लंबित रहते हैं। बिना रिश्वत के न तो आदेश पारित किए जाते हैं और न ही रिपोर्ट लगाई जाती है।
आरोप है कि तहसील सदर में वीआईपी ड्यूटी का हवाला देकर मुकदमों में अक्सर सामान्य तिथि डाल दी जाती है, जिससे मामलों में जानबूझकर देरी की जाती है। वहीं, दफा 24 की पत्रावली में भी भ्रष्टाचार चरम पर है — जहाँ नाजायज लाभ मिलने की संभावना होती है, वहाँ पैमाइश कर दी जाती है, लेकिन जहाँ लाभ की गुंजाइश नहीं होती, वहाँ रिपोर्ट “संभव नहीं” लिखकर फाइल बंद कर दी जाती है।
अधिवक्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि लंबित अपीलों में रिमाण्ड (Remand) के नाम पर भी नाजायज लाभ लिए जा रहे हैं — यदि रिश्वत दी जाए तो रिमाण्ड संभव बताया जाता है, अन्यथा मामला लटका दिया जाता है।
इन लगातार शिकायतों के बावजूद प्रशासन द्वारा कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई, जिससे नाराज़ होकर अधिवक्ताओं ने अनशन आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया है।
आंदोलन का नेतृत्व रविन्द्र कुमार यादव (एडवोकेट, पूर्व अध्यक्ष तहसील बार एसोसिएशन, सदर वाराणसी) और सुरेन्द्र कुमार (एडवोकेट, पूर्व महामंत्री, तहसील बार एसोसिएशन, सदर वाराणसी) के साथ अन्य अधिवक्ताओं ने किया।
अधिवक्ताओं की प्रमुख मांगें हैं:
- तहसील सदर में फैले भ्रष्टाचार की उच्च स्तरीय जांच की जाए।
- भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ निलंबन एवं दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
- दाखिल-खारिज, अपील और पैमाइश जैसी प्रक्रियाओं को समयबद्ध और पारदर्शी बनाया जाए।
- जनता और अधिवक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए स्थायी निगरानी समिति गठित की जाए।
अधिवक्ताओं ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन को जिला स्तर पर व्यापक स्वरूप दिया जाएगा।







