वाराणसी। मनरेगा और मजदूर अधिकारों पर कथित हमले के विरोध में वाराणसी के शास्त्री घाट पर मनरेगा से जुड़े कर्मचारियों और मजदूर संगठनों ने जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए G RAM G (VB G RAM G) कानून को जन-विरोधी बताते हुए इसे तत्काल वापस लेने की मांग की।
प्रदर्शन के दौरान मजदूर नेताओं ने मीडिया से बातचीत में कहा कि दो दशक पहले मजदूरों की स्थिति बेहद दयनीय थी। 3–4 किलो अनाज के बदले कड़ी धूप, सर्दी और बरसात में काम करना पड़ता था। खेतों में काम बंद होने पर मजदूर शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर थे। दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज से आने वाले भूमिहीन मजदूर औने-पौने दाम पर काम करने के लिए विवश थे। न तो मजदूरी तय थी और न ही उसे मांगने की ताकत।
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि वर्ष 2005 में लागू महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ने मजदूरों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाया। पहली बार 100 दिन के रोजगार की गारंटी, न्यूनतम मजदूरी और काम न मिलने पर भत्ता का अधिकार मिला। इससे गांवों से होने वाला पलायन भी कम हुआ और मजदूर अपनी “उचित मजदूरी” की मांग करने की स्थिति में आए।
उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान जब मजदूर पूरी तरह बेसहारा हो गए थे, तब मनरेगा ही उनका सहारा बना। इसी वजह से यह कानून पूंजीपतियों की आंखों की किरकिरी बन गया। मजदूरी की मांग बढ़ने से सस्ते श्रमिकों की उपलब्धता कम हुई, जिससे बड़े उद्योगपतियों को नुकसान हुआ।
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि अब मोदी सरकार मनरेगा को कमजोर करने के लिए नया G RAM G कानून लेकर आई है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण मजदूरों को फिर से सस्ते श्रमिकों में बदलना है ताकि कारखानों और पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाया जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि हाल ही में लागू किए गए चार श्रम कानूनों के जरिए पहले ही मजदूरों के शोषण को बढ़ाया गया है और यह नया कानून उसी कड़ी का हिस्सा है।
मजदूर नेताओं ने कहा कि मनरेगा महात्मा गांधी के स्वराज की अवधारणा पर आधारित था, जिसमें मजबूत पंचायतें, स्थानीय विकास योजनाएं और गरीबों को आर्थिक-सामाजिक शक्ति देने का लक्ष्य था। लेकिन नए कानून में गांधी का नाम तक हटा दिया गया है, जो गांव, गरीब और गांधी के खिलाफ तथा अमीर पूंजीपतियों के हित में है।









