वाराणसी: आषाढ़ पूर्णिमा के पावन अवसर पर धर्म चक्र प्रवर्तन दिवस महोत्सव का आयोजन सारनाथ में श्रद्धा और भव्यता के साथ संपन्न हुआ। यह वही दिन है जब ईसा पूर्व 528 में भगवान बुद्ध ने सारनाथ में धर्म चक्र का प्रवर्तन किया था। इसी ऐतिहासिक घटना की स्मृति में हर वर्ष यह दिवस गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. भीमराव अंबेडकर स्मारक, कचहरी से निकले धम्म जुलूस से हुई, जो पांडेपुर, पहाड़िया और आशापुर चौराहा होते हुए सारनाथ के रोज गार्डन पहुंचा, जहां इसका समापन संगोष्ठी के साथ हुआ।
जुलूस में भगवान बुद्ध के पांच परिव्राजकों की प्रतीकात्मक झांकी निकाली गई, जिन्हें बुद्ध ने प्रथम दीक्षा दी थी। इसके साथ अष्टांगिक मार्ग को दर्शाती झांकी भी आकर्षण का केंद्र रही। जुलूस में लगभग 500 लोग शामिल हुए, जबकि संगोष्ठी में करीब 400 प्रतिभागियों ने भाग लिया।जुलूस से पूर्व सभी श्रद्धालुओं ने धम्मेक स्तूप जाकर पूजा-अर्चना की, जो बुद्ध के प्रथम उपदेश और धर्म चक्र प्रवर्तन का प्रमुख प्रतीक है।
इस कार्यक्रम की पूर्ण रूपरेखा डॉ. विनोद अनाव्रत के मार्गदर्शन में तैयार की गई, जिसमें कई सहयोगियों ने योगदान दिया। संगोष्ठी में बुद्धमित्र मुसाफ़िर, डॉ. हरीश चंद्र, डॉ. राज कुमार सोनकर एवं सीरीमा प्रेमा जैसे विद्वानों ने अपने विचार और मार्गदर्शन साझा किए।
यह आयोजन न केवल बौद्ध संस्कृति और धम्म परंपरा की पुनः स्मृति कराता है, बल्कि सामाजिक चेतना, शांति और समता के मूल्यों को भी व्यापक रूप से प्रसारित करता है।

Author: Ujala Sanchar
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