गाजीपुर: प्रकृति-ए-विज्ञान शिक्षा समिति बहरियाबाद के तत्वावधान में मंगलवार को जगदीश कार्यालय पर मदर टेरेसा के जीवन और उनके योगदान पर आधारित विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर संस्था के प्रबंधक डॉ. मुमताज अहमद ने मदर टेरेसा की जीवनी और उनके समाजसेवी योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भारत रत्न और नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित मदर टेरेसा त्याग और करुणा की प्रतिमूर्ति थीं। उनका असली नाम अग्नेश गोकशा बोजाक्सीहु था।
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्काप्जे, मैसिडोनिया (अब उत्तरी मैसिडोनिया) में हुआ था। बचपन से ही धार्मिक विचारों वाली मदर टेरेसा ने 12 वर्ष की आयु में गरीबों की सेवा का संकल्प लिया। 18 वर्ष की उम्र में वे आयरलैंड जाकर सिस्टर्स ऑफ लोरेटो संस्था से जुड़ीं और 1929 में बतौर मिशनरी भारत आईं।
उन्होंने कोलकाता के सेंट मैरी स्कूल में लगभग 20 वर्ष तक शिक्षण कार्य किया। लेकिन 1946 में एक ट्रेन यात्रा के दौरान गरीबों और बीमारों की दयनीय स्थिति देखकर उन्होंने स्कूल छोड़ने और गरीबों की सेवा में जीवन समर्पित करने का निर्णय लिया।
1950 में उन्होंने ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ संस्था की स्थापना की। इसी के अंतर्गत कोलकाता में निर्मल हृदय आश्रम शुरू किया, जहां असहाय और अंतिम समय से गुजर रहे लोगों को सम्मानजनक जीवन और सेवा प्रदान की जाती थी।
विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि मदर टेरेसा का जीवन मानवता के लिए एक प्रेरणा है और उनके त्याग व सेवा भाव से हमें समाजसेवा की राह पर चलने की सीख मिलती है।

Author: Ujala Sanchar
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