लखनऊ: प्रदेशभर में बिजली कर्मचारियों का निजीकरण के खिलाफ आंदोलन जारी है। कर्मचारियों को आम उपभोक्ताओं का भी व्यापक समर्थन मिल रहा है। संयुक्त संघर्ष समिति के नेताओं ने आरोप लगाया है कि निजीकरण से जुड़े सभी प्रकरण भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं, जिससे उपभोक्ताओं को न्याय नहीं मिल पाएगा।
नेताओं ने कहा कि समिति निजीकरण का पूर्ण बहिष्कार करती है और प्रदेश के मुख्यमंत्री से इस फैसले पर गंभीरता से विचार करने की अपील करती है। उनका कहना है कि “अगर निगम और निजी घराने अपने मकसद में सफल हो गए तो आम उपभोक्ताओं का शोषण होगा।”
संघर्ष समिति ने चेतावनी दी कि निगम और निजी कंपनियों द्वारा सरकार को गुमराह किया जा रहा है। सरकार को ऐसे तत्वों से सतर्क रहने की आवश्यकता है।
नेताओं ने यह भी सवाल उठाया कि यदि पूर्व में चलचित्र निगम और उत्तर प्रदेश सीमेंट फैक्ट्री के बंद होने पर कर्मचारियों को दूसरे विभागों में समायोजित किया गया था, तो बिजली विभाग के निजीकरण की स्थिति में लाखों कर्मचारियों और अधिकारियों का समायोजन कैसे होगा?
कर्मचारी नेता वर्षों से धरना-प्रदर्शन और आंदोलन कर रहे हैं। उनका कहना है कि निजीकरण की पत्रावलियों की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए ताकि आने वाली भयावह स्थिति को टाला जा सके।

Author: Ujala Sanchar
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