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वाराणसी: ‘नागार्जुन की काव्यभाषा’ पुस्तक का बीएचयू में लोकार्पण, वक्ता बोले, नागार्जुन की कविता में बहुरंगी प्रभाव 

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वाराणसी: बीएचयू के हिंदी विभाग स्थित रामचंद्र शुक्ल सभागार में शनिवार को प्रतिष्ठित आलोचक प्रो. कमलेश वर्मा की पुस्तक ‘नागार्जुन की काव्यभाषा’ का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर नई किताब प्रकाशन समूह द्वारा पुस्तक पर केंद्रित परिचर्चा का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने की।

प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि यह पुस्तक नागार्जुन की बहुवर्णीय काव्यभाषा को गहराई से समझने का एक सफल प्रयास है। उन्होंने कहा कि जैसे निराला की काव्यभाषा में वैविध्य है, वैसा ही बहुरंगी प्रभाव नागार्जुन की कविता में भी मिलता है। प्रो. सिंह ने पुस्तक को नागार्जुन की काव्यभाषा के साहसिक मूल्यांकन का उदाहरण बताया।

मुख्य वक्ता प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि प्रगतिशील कविता के कलात्मक और भाषाई वैभव को अक्सर अनदेखा किया जाता है, लेकिन यह पुस्तक नागार्जुन की काव्यभाषा के रूप, शैली और शिल्प का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। उन्होंने नागार्जुन को आधुनिक काव्य के विलक्षण संत कवि बताते हुए कहा कि उनके काव्य में साधारण भाषा में असाधारण वैभव झलकता है।

विशिष्ट अतिथि प्रो. प्रभाकर सिंह ने कहा कि आधुनिक आलोचना में काव्यभाषा को प्रायः हाशिये पर रखा जाता है, लेकिन यह पुस्तक इस दृष्टिकोण को चुनौती देती है। उन्होंने कहा कि नागार्जुन की हिंदी कविता में मैथिली की मिठास और गंध को कमलेश वर्मा ने गहराई से रेखांकित किया है। 

पुस्तक के लेखक प्रो. कमलेश वर्मा ने आत्मवक्तव्य में कहा कि प्रगतिशील कवियों की काव्यभाषा पर गहन अध्ययन के अभाव को देखते हुए यह पुस्तक लिखी गई है। उन्होंने बताया कि नागार्जुन की कविता में भाषा के कई स्रोत हैं, जिनसे उनकी रचनाएं जीवन के विविध पहलुओं को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त करती हैं।

परिचर्चा के दौरान डॉ. विंध्याचल यादव ने पुस्तक की प्रमुख चिंताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक काव्यभाषा को कविता की मूल सत्ता और अभिव्यक्ति के प्रभावी माध्यम के रूप में रेखांकित करती है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. महेंद्र प्रसाद कुशवाहा ने किया।

धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुचिता वर्मा ने दिया। कुलगीत की प्रस्तुति अलका कुमारी और निवेदिता ने की। कार्यक्रम में प्रो. कृष्णमोहन, डॉ. राजकुमार मीणा, डॉ. शैलेन्द्र सिंह समेत कई विद्वानों, छात्रों और शोधार्थियों ने भाग लिया।

Ujala Sanchar
Author: Ujala Sanchar

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