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रूस से व्यापार पर नाटो की धमकी: भारत पर लगाए जा सकते हैं सेकेंडरी प्रतिबंध

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नई दिल्ली: यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस के खिलाफ वैश्विक मोर्चा संभाल रहे अमेरिका और उसके सहयोगी देशों (नाटो) ने अब भारत सहित BRICS देशों पर सख्त चेतावनी जारी की है। नाटो महासचिव मार्क रूट ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भारत का नाम लेकर कहा कि अगर नई दिल्ली ने रूस के साथ व्यापार या हथियार खरीद की गतिविधियां जारी रखीं, तो उस पर “सेकेंडरी सेंक्शंस” (द्वितीयक प्रतिबंध) लगाए जा सकते हैं।

भारत को क्यों दी गई चेतावनी?

मार्क रूट ने कहा, “रूस आज भी प्रतिबंधों के बावजूद फल-फूल रहा है और इसका मुख्य कारण है – भारत, चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश, जो लगातार रूस को बैकडोर से सपोर्ट दे रहे हैं।”

उन्होंने भारत को रूस के समर्थन के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया और कहा कि अगर भारत ने नाटो की चेतावनियों को नजरअंदाज किया, तो उस पर हर सेक्टर में 100% टैरिफ लगाए जा सकते हैं।

क्या हैं सेकेंडरी सेंक्शंस?

सेकेंडरी सेंक्शंस का मतलब है कि जो देश रूस के साथ व्यापारिक या सामरिक रिश्ते रखते हैं, उनके साथ भी अमेरिका और नाटो देश आर्थिक, रक्षा और द्विपक्षीय संबंध समाप्त कर सकते हैं। यह प्रतिबंध ट्रंप युग के “ट्रंप टैरिफ” की तरह कड़े होंगे और प्रभावित देश की आर्थिक रीढ़ पर सीधा असर डाल सकते हैं।

भारत पर पश्चिम के एहसान का क्या हुआ?

भारत में इस चेतावनी को लेकर जन-आक्रोश भी देखा जा रहा है। विशेषज्ञ और आम नागरिक यह सवाल उठा रहे हैं कि जब तुर्की में भूकंप आया था, तब भारत ने ऑपरेशन दोस्त चलाकर जान बचाई। जब कोरोना काल में अमेरिका और यूरोप पैरासिटामॉल के लिए तरस रहे थे, तब भारत ने उन्हें दवा फ्री में भेजी। फिर भी आज इन्हीं देशों से भारत को धमकी मिल रही है?

भारत सरकार की चुप्पी

फिलहाल भारत सरकार की तरफ से नाटो महासचिव के इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि भारत ने अतीत में स्पष्ट किया है कि वह “स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति” का पालन करता है और किसी भी एक धड़े के साथ पूरी तरह खड़ा नहीं होता।

अब बड़ा सवाल यह है कि भारत को क्या करना चाहिए, क्या वह पश्चिमी देशों के दबाव में आकर रूस से दूरी बनाए या फिर वह अपने रणनीतिक साझेदार रूस के साथ खड़ा रहे, जैसा वह दशकों से करता आया है? भारत की यह कूटनीतिक दिशा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी छवि और भविष्य की साझेदारियों को तय करेगी।

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