वाराणसी: पूरी दुनिया से लोग घूमने आते रहते हैं। ठंड में काशी के घाटों पर गर्म चाय और सुबह-सुबह ठंडे पानी में डुबकी लगाना लेकिन, क्या आप जानते हैं, काशी में सिर्फ इंसान ही नहीं, एक खास किस्म के पक्षी भी आते हैं। ये पक्षी विदेशी मेहमान हैं जो हजारों किलोमीटर से हर साल भारत आते हैं। काशी में हर साल ये सफेद पक्षी नवंबर के अंत से फरवरी के बीच गंगा के किनारे नजर आते हैं।
ये पक्षी रूस के साइबेरिया इलाके से आते हैं। इन्हें साइबेरियन पक्षी कहते हैं। ये ऐसी पक्षी हैं जो हवा में उड़ते हैं और पानी में भी तैरते हैं। सफेद रंग के इन पक्षियों की चोंच और पैर नारंगी रंग के होते हैं। साइबेरिया बहुत ही ठंडी जगह है जहां नवंबर से लेकर मार्च तक तापमान जीरो से बहुत -50, -60 डिग्री नीचे चला जाता है। इस तापमान में इन पक्षियों का जिंदा रह पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसीलिए ये पक्षी हजारों किलोमीटर की दूरी करके भारत आते हैं।
साइबेरिया पक्षी क्लाइमेट चेंज की वजह से हुए कम
बीएचयू की प्रोफेसर चंदना हलधर ने बताया कि इस बार साइबेरियन पक्षी काफी देर और कम आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसका वजह है पूरे देश में क्लाइमेट चेंज इसकी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि तमाम ऐसी जगह हैं, जहां पर समय से पहले बर्फबारी हो रही है, जो इनके रास्तों को रुकावट पैदा कर रही है। उन्होंने कहा कि साइबेरिया से चलते वक्त जब इनके रास्तों में बाढ़ और तूफान जैसे हालात मिल रहे हैं तो उनके लिए समस्या हो जा रही है। उन्होंने बताया कि इसकी वजह से कुछ पक्षियां मर जाते हैं जो आ रहे हैं उसकी संख्या कम है।
अफगानिस्तान और पाकिस्तान होते हुए आते हैं भारत
बीएचयू के वैज्ञानिक ने बताया कि साइबेरियन पक्षियों की सैकड़ों ऐसी प्रजातियां हैं जो हर साल अपना घर छोड़कर दुनियाभर में पनाह पाती हैं। भारत आने के लिए ये पक्षी 4000 किलोमीटर से भी ज्यादा लम्बा सफर उड़कर पूरा करते हैं। ये पक्षी अफगानिस्तान और पाकिस्तान को पार करते हुए भारत आते हैं। इतना लम्बा सफ़र ये 10,20 के समूह में नहीं बल्की हजारों के ग्रुप में उड़ते हुए पूरा करते हैं।
भारत में भी इनका एक लैंडिंग स्थान है। ये पक्षी सबसे पहले महाराष्ट्र के बारामती पहुंचते हैं। यानी अगर सफर में कोई पक्षी बाकियों से अलग भी हो गया तो उसे पता है कि उसके साथी उसे बारामती में स्थित ‘बिग बर्ड सेंचुअरी’ में मिलेंगे। यहां इकठ्ठा होकर ये पक्षी भारत के कोने-कोने में जाते हैं और पूरी ठंड यहीं बिताते हैं।

Author: Ujala Sanchar
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