Saraswati Mata ki aarti : विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती माता की आरती का महत्त्व और लाभ

सरस्वती माता, जिन्हें विद्या और ज्ञान की देवी के रूप में जाना जाता है, उनकी पूजा का खास महत्व है। वह संगीत, कला, ज्ञान और शिक्षा की अधिष्ठात्री देवी हैं। सरस्वती माता के आशीर्वाद से बुद्धि, विवेक और ज्ञान का विकास होता है, और इसी कारण विद्यार्थी और कलाकार उन्हें विशेष रूप से पूजते हैं। सरस्वती माता की आराधना से मन की अशुद्धियां दूर होती हैं और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। आरती और भजन के माध्यम से उनके चरणों में श्रद्धा अर्पित कर भक्तजन उनसे ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति की कामना करते हैं।

सरस्वती माता की आरती के समय भक्तजन उनके चरणों में दीप जलाकर, पुष्प अर्पित कर और मधुर भजन गाकर माता का आह्वान करते हैं। आरती से वातावरण में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो मन को शांति और एकाग्रता प्रदान करती है। इस आरती के माध्यम से भक्त अपने जीवन को सफल और समृद्ध बनाने के लिए देवी सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं। आरती का महत्व यही है कि इसके प्रभाव से ज्ञान और सफलता का मार्ग खुलता है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन में प्रगति कर सकता है।

आरती

जय सरस्वती माता;
मैया जय सरस्वती माता |
सदगुण वैभव शालिनी;
त्रिभुवन विख्याता||
||जय जय सरस्वती माता…||

चन्द्रवदनि पद्मासिनि;
द्युति मंगलकारी ||
सोहे शुभ हंस सवारी;
अतुल तेजधारी ||
||जय जय सरस्वती माता…||

बाएं कर में वीणा;
दाएं कर माला |
शीश मुकुट मणि सोहे;
गल मोतियन माला ||
जय जय सरस्वती माता…||

देवी शरण जो आए;
उनका उद्धार किया |
पैठी मंथरा दासी;
रावण संहार किया ||
|| जय जय सरस्वती माता…||

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विद्या ज्ञान प्रदायिनि;
ज्ञान प्रकाश भरो |
मोह अज्ञान और तिमिर का;
जग से नाश करो ||
जय जय सरस्वती माता…||

धूप दीप फल मेवा;
माँ स्वीकार करो |
ज्ञानचक्षु दे माता;
जग निस्तार करो ||
|| जय सरस्वती माता…||

माँ सरस्वती की आरती;
जो कोई जन गावे ||
हितकारी सुखकारी;
ज्ञान भक्ति पावे ||
|| जय जय सरस्वती माता…||

जय सरस्वती माता;
जय जय सरस्वती माता ||
सदगुण वैभव शालिनी;
त्रिभुवन विख्याता ||

वंदना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता;
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना |
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता;
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ||1||

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं;
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌ |
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌;
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌ ||2||

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