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नीतीश कुमार: पहली हार से लेकर 10वीं बार मुख्यमंत्री बनने तक— बिहार की राजनीति के सबसे बड़े ‘सिकंदर’ की पूरी कहानी…….

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बिहार। अगर भारत की राजनीति में किसी नेता का सफर सबसे दिलचस्प, उतार-चढ़ाव से भरा और अप्रत्याशित रहा है, तो वह नाम है नीतीश कुमार। वह नेता, जिसने कभी जेपी आंदोलन में छात्र नेता के रूप में शुरुआत की, लालू प्रसाद यादव के साथ राजनीति सीखी, फिर उन्हीं के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी बने और आज वह 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं — ऐसा रिकॉर्ड जो भारतीय राजनीति में किसी और के पास नहीं।

नीतीश कुमार अब सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति के सबसे बड़े गेम चेंजर बन चुके हैं। जब भी उन्हें कमज़ोर समझा गया, उन्होंने और बड़ी वापसी की। 2025 के विधानसभा चुनाव में जहां मुकाबला कांटे का बताया जा रहा था, वहीं नीतीश की रणनीति और अनुभव ने ऐसी राजनीतिक लहर पैदा की कि विपक्ष संभल ही नहीं पाया। 85 सीटों के साथ एनडीए को निर्णायक बढ़त मिली, और नीतीश फिर साबित कर गए — “दबदबा था और दबदबा रहेगा।”

लालू के साथी से सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी तक — नीतीश कुमार की यह है राजनीतिक यात्रा

1951 में जन्म — ‘मुन्ना’ से इंजीनियर तक का सफर

मार्च 1951 में बख्तियारपुर में जन्मे नीतीश कुमार को घर में प्यार से ‘मुन्ना’ कहा जाता था। पिता आयुर्वेदिक डॉक्टर थे, मां गृहिणी थीं।
10वीं में अच्छे अंक आए, तो उन्हें इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पढ़ने पटना भेजा गया। 1972 में नीतीश छात्र राजनीति में उतरे और कॉलेज यूनियन के अध्यक्ष बने। 1973 में उनकी शादी मंजू कुमारी सिन्हा से हुई। इंजीनियर की नौकरी मिली, लेकिन उन्होंने नौकरी छोड़कर जेपी आंदोलन का रास्ता चुना — यहीं से राजनीति की असली शुरुआत हुई।

पहले चुनाव में हार और पत्नी की मदद से मिली पहली जीत

1977 में जनता पार्टी ने उन्हें टिकट दिया, लेकिन वह हार गए। 1980 में फिर हार। 1985 में वह आखिरी बार किस्मत आजमाने पहुंचे — पत्नी ने ₹20,000 देकर उन्हें चुनाव लड़ने को कहा। और इसी बार 22,000 वोटों से नीतीश की पहली बड़ी जीत दर्ज हुई।

लालू के ‘हनुमान’ से अलग रास्ते

1990 में लालू यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। उस समय नीतीश उनकी टीम के सबसे भरोसेमंद नेता थे। लेकिन भ्रष्टाचार, दबंगई और जातिवाद जैसे आरोपों से नीतीश का लालू से मोहभंग हो गया। उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ समता पार्टी बनाई। 1995 में उनकी पार्टी सिर्फ 7 सीटें लाई, लेकिन नीतीश ने बिहार में विकल्प की राजनीति खड़ी कर दी।

साल 2000 का चुनाव — 7 दिनों की मुख्यमंत्री कुर्सी

2000 के चुनाव में एनडीए ने नीतीश को सीएम पद के लिए आगे किया। उन्होंने सरकार बनाई, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर सके—और 7 दिन में इस्तीफा देना पड़ा। यह वह समय था, जब लालू अपने राजनीतिक चरम पर थे।

2005 — बिहार की राजनीति में बदलाव का युग

2005 में विधानसभा दो बार हुई—पहले हैंग विधानसभा, फिर पुनः चुनाव। नवंबर के चुनाव में एनडीए को 143 सीटें मिलीं और पहली बार नीतीश कुमार स्थायी रूप से बिहार के मुख्यमंत्री बने।

2005–2010 का समय बिहार की राजनीति का टर्निंग पॉइंट माना जाता है। जंगलराज के नाम पर चल रही आलोचनाओं को उन्होंने प्रभावी शासन और कानून-व्यवस्था से जवाब दिया। 2010 में उन्हें 115 सीटों का जनादेश हासिल हुआ।

2013 — मोदी के नाम पर बीजेपी से बिछड़ाव

नीतीश को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर ऐतराज था।
जब बीजेपी ने मोदी को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया, तो उन्होंने 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया।

2014 में जेडीयू को करारी हार मिली—सिर्फ 2 सीटें।
नीतीश ने सीएम पद से इस्तीफा दिया लेकिन बाद में जीतन राम मांझी को हटाकर खुद लौट आए — इस बार लालू के साथ।

2015 — महागठबंधन का स्वर्णयुग

नीतीश, लालू और कांग्रेस का गठबंधन भारी जीत लाया। लेकिन लालू परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद नीतीश ने इस्तीफा दे दिया।इस्तीफा देने के घंटों बाद उन्होंने बीजेपी से हाथ मिला लिया। 2017 में वह छठी बार मुख्यमंत्री बने।

2020–2024 — समीकरण बदले, नीतीश बदले, गठबंधन बदले

2020 के चुनाव में जेडीयू 43 सीटों तक सिमट गई, पर बीजेपी ने उन्हें सीएम बनाए रखा। 2022 में उन्होंने फिर से एनडीए छोड़ा और महागठबंधन में शामिल हो गए — और आठवीं बार मुख्यमंत्री बने। उन्होंने कहा — “अब कभी बीजेपी से हाथ नहीं मिलाऊंगा।” लेकिन राजनीति में कोई कसम स्थायी नहीं रहती। 28 जनवरी 2024 को नीतीश वापस एनडीए में शामिल हुए और नौवीं बार मुख्यमंत्री बने।

2025 — इतिहास रचने का साल

2025 के चुनाव में एनडीए को स्पष्ट बढ़त मिली। नीतीश कुमार अब 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं —
भारतीय राजनीति में ऐसा रिकॉर्ड किसी भी नेता ने नहीं बनाया।

कौन कितनी बार मुख्यमंत्री? — नीतीश सबसे ऊपर

  • नीतीश कुमार — 10 बार (रिकॉर्ड)
  • जयललिता — 6 बार
  • वीरभद्र सिंह — 6 बार
  • ज्योति बसु — 5 बार
  • नवीन पटनायक — 5 बार
  • पवन चामलिंग — 5 बार

क्यों कहा जाता है नीतीश को ‘सियासत का सिकंदर’

  • हार के बाद सबसे बड़ी वापसी करने वाले नेता
  • गठबंधन राजनीति के माहिर खिलाड़ी
  • बिहार में शासन और विकास का नया मॉडल
  • हर राजनीतिक मोड़ पर रणनीति बदलने में सक्षम
  • विपक्ष को चौंकाने वाले फैसले लेने की क्षमता

नीतीश कुमार की कहानी सिर्फ एक नेता की कहानी नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के बदलते दौर की गाथा है। वह नेता, जिसने हर मोड़ पर चुनौतियों को मात दी, समीकरण बदले, रास्ते बदले, गठबंधन बदले— लेकिन अपने प्रभाव और सत्ता की पकड़ को हमेशा कायम रखा।

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