अरविंद केजरीवाल को राजनीति का चतुर खिलाड़ी माना जाता है। उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी में कई अनोखे और अप्रत्याशित फैसले लिए हैं। पारंपरिक राजनीति की राह पर चलने के बजाय उन्होंने नई राह बनाई है। संकटों को अवसर में बदलने का उनका करिश्मा जगजाहिर है। हालांकि, उनकी राजनीति में विरोधाभास भी साफ नजर आते हैं। कई बार उनके शब्द और कर्म आपस में मेल नहीं खाते, लेकिन यही विरोधाभास उनकी राजनीति को और दिलचस्प बनाते हैं, क्योंकि राजनीति में कहा जाता है, सब जायज है।
अतिशी को मुख्यमंत्री बनाकर चौंकाया
हाल ही में केजरीवाल ने दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आतिशी को बिठाकर सबको चौंका दिया। आतिशी वरिष्ठता क्रम में निचले पायदान पर थीं, फिर भी उन्हें दिल्ली की कमान सौंप दी गई। इससे पहले भी केजरीवाल ऐसे अप्रत्याशित फैसले ले चुके हैं। हालांकि, यह सवाल भी उठता है कि क्या ये फैसले जनादेश का मजाक नहीं उड़ाते? क्या यह संवैधानिक व्यवस्था के साथ खिलवाड़ नहीं है?
राजनीतिक दांव और चुनावी तैयारियां
अरविंद केजरीवाल की राजनीति साहस और चतुराई का मिश्रण है। उन्होंने हरियाणा में भी स्वतंत्र चुनाव लड़ने का फैसला लेकर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की है। वे अपने इस्तीफे को जनता के बीच ईमानदारी का प्रमाण पत्र बनाना चाहते हैं, ताकि आगामी चुनाव में जनता की सहानुभूति मिल सके। हालांकि, पिछले चुनाव में एक भी सीट न जीत पाने वाली पार्टी के लिए यह राह इतनी आसान नहीं होगी।
मुख्यमंत्री बनने का कांटों भरा ताज
आतिशी के लिए यह मुख्यमंत्री पद कांटों भरा ताज साबित हो सकता है। उनके पास काम करने का समय बहुत कम है, और चुनौती बहुत बड़ी। पार्टी के दो प्रमुख नेता अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने साफ कर दिया है कि वे नए सिरे से जनादेश मिलने के बाद ही वापस आएंगे। ऐसे में अगर पार्टी चुनाव हारती है, तो आतिशी को पद छोड़ना ही पड़ेगा। और अगर जीतती है, तब भी उनका पद से हटना तय है।
जनादेश की कसौटी पर केजरीवाल
केजरीवाल का उद्देश्य खुद को भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ एक सशक्त विकल्प के रूप में पेश करना है। वे जनता को यह दिखाना चाहते हैं कि उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप राजनीति से प्रेरित हैं। लेकिन अगर उनकी चाल में सच्चाई नहीं होती, तो यह उन्हीं के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। जनता से ईमानदारी का प्रमाण पत्र पाना उनका दीर्घकालिक लक्ष्य है, लेकिन इसके लिए उन्हें अपनी राजनीति को और पारदर्शी बनाना होगा।
आतिशी की चुनौती और जिम्मेदारी
अब आतिशी के सामने चुनौती है कि वे इस थोड़े से समय में अपनी छाप छोड़ें और पार्टी की विरासत को आगे बढ़ाएं। दिल्ली के नागरिकों की उम्मीदों पर खरा उतरने के साथ ही पार्टी को चुनावी नैया पार लगाने की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि वे इस चुनौती का कैसे सामना करती हैं और क्या वे आम आदमी पार्टी को आगामी चुनाव में जीत दिला पाती हैं।

Author: Ujala Sanchar
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