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आतंकवाद मानवता के खिलाफ सबसे बड़ा खतरा: केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह

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आतंकवाद पूरी दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है। यह मानवता, शांति, सह-अस्तित्व, विकास और लोकतंत्र जैसे मूल्यों का शत्रु है। आतंकवाद एक ऐसी कट्टर सोच का परिणाम है जो सिर्फ़ विनाश, भय और नफरत को जन्म देती है। यह न तो कोई समाधान है, न ही किसी बदलाव का माध्यम बन सकता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि आतंकवाद ने कभी कोई स्थायी या सार्थक परिणाम नहीं दिया है। आतंकवाद सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए विध्वंसक आडम्बर मात्र है I

यह सोचना भी एक भ्रम है कि कोई आतंकवादी किसी का स्वतंत्रता सेनानी हो सकता है। कोई भी धार्मिक, वैचारिक या राजनीतिक कारण आतंकवाद को जायज़ नहीं ठहरा सकता। आतंकवाद की कोख से क्रांति नहीं, बल्कि सिर्फ़ घृणा, बर्बादी और हताशा जन्म लेते हैं। एक सच्चा और मानवीय उद्देश्य कभी भी खून-खराबे और हिंसा के बल पर हासिल नहीं किया जा सकता।

हमारे सामने जितनी भी प्राकृतिक आपदाएं और महामारियाँ आईं, वे समय के साथ समाप्त हो गईं। लेकिन आतंकवाद एक ऐसी महामारी है जो अपने आप खत्म नहीं होगी। इसके खात्मे के लिए ठोस और सामूहिक प्रयास जरूरी हैं। जब तक इसका अस्तित्व रहेगा, यह समाज, विकास और संसाधनों को नुकसान पहुंचाता रहेगा। भारत ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पूरी दुनिया के सामने मिसाल पेश की है।

पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का भारत दशकों से शिकार रहा है। हाल ही में पहलगाम में जो हमला हुआ, उसमें बेगुनाह पर्यटकों को केवल उनके धर्म के आधार पर मारा गया। यह क्रूरता और बर्बरता की पराकाष्ठा थी। इस हमले का मकसद भारत की एकता को तोड़ना और देश में डर फैलाना था, लेकिन ऐसी कोशिशें हमेशा असफल ही साबित होती हैं। यह सच है कि कोई भी मज़हब निर्दोषों की हत्या को उचित नहीं ठहरा सकता। आतंकवादी केवल धर्म का नाम लेकर अपने कुकर्मों को वैधता देने की कोशिश करते हैं। अब हमारी नीति है कि आतंकवादी जहाँ भी हैं हम उन्हें समाप्त करने से नहीं हिचकेंगे। साथ ही आतंकवाद को प्रायोजित करने वाली सरकार और आतंकवाद के मास्टरमाइंड के बीच अंतर किए बिना मुंहतोड़ जवाब देंगे।

भारत अब पहले की तरह केवल प्रतिक्रिया करने वाला देश नहीं रहा। हमारी नीति में मौलिक परिवर्तन आया है। अब हम आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति पर चलते हैं। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक, 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक और 2025 का ऑपरेशन सिंदूर—ये सभी कदम इस नई नीति का प्रमाण हैं। भारत ने यह साफ कर दिया है कि वह आतंकवादी जहां भी होंगे, उन्हें खत्म करने से पीछे नहीं हटेगा। अब हम यह भेद भी नहीं करते कि आतंकवादी राज्य प्रायोजित हैं या किसी संगठन से जुड़े हैं। जो देश आतंकवाद को समर्थन देते हैं, उन्हें भी अब सीधा जवाब दिया जा रहा है।

नई दिल्ली में आयोजित ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने संबोधन में यह स्पष्ट कर दिया कि भारत आतंकवाद के किसी भी स्वरूप को सहन नहीं करेगा। उन्होंने कहा, “हम एक अकेले हमले को भी कई हमलों के समान मानते हैं। एक जनहानि भी अनेक जनहानियों के बराबर है। जब तक आतंकवाद का समूल नाश नहीं हो जाता, भारत शांत नहीं बैठेगा।” इस वक्तव्य के माध्यम से भारत की नीति की गंभीरता और दृढ़ता एक बार फिर सामने आई है। ऑपरेशन सिंदूर द्वारा भारत ने न केवल आतंकवादियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की, बल्कि यह भी दिखा दिया कि भारतीय सशस्त्र बल और सरकार आतंकवाद के सम्पूर्ण उन्मूलन के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।

हालाँकि, आतंकवादियों का सफाया और उनके शिविरों को नष्ट करना एक आवश्यक कदम है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। आतंकवाद को समाप्त करने के लिए उस पूरे नेटवर्क को ध्वस्त करना होगा, जो इन्हें आर्थिक, वैचारिक और राजनीतिक समर्थन प्रदान करता है। जब तक उस संरचना को जड़ से नहीं उखाड़ा जाएगा, तब तक यह समस्या लौट-लौट कर सामने आती रहेगी। भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उन राष्ट्रों का भी खुलासा किया है जो आतंकवाद को रणनीतिक उपकरण की तरह इस्तेमाल करते हैं। पाकिस्तान इसका सबसे प्रमुख उदाहरण है। भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित कर यह स्पष्ट संदेश दिया है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को प्रायोजित करता रहेगा, तब तक उसे आर्थिक या कूटनीतिक लाभ नहीं मिलेगा। यह निर्णय पाकिस्तान को आर्थिक रूप से भी आघात पहुंचाने वाला है, क्योंकि सिंधु नदी प्रणाली उसकी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

आतंकवाद किसी एक देश की समस्या नहीं, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय संकट है। वैश्विक आतंकवाद सूचकांक के अनुसार, हाल के वर्षों में आतंकवादी घटनाओं से प्रभावित देशों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। यह एक ऐसा वायरस है जो न सीमाओं की परवाह करता है और न ही धर्म, भाषा या संस्कृति की। यह पूरे विश्व की शांति और स्थिरता के लिए गंभीर खतरा है। ऐसे में, समय की मांग है कि वैश्विक समुदाय सभी प्रकार के मतभेदों और राजनीतिक स्वार्थों को एक ओर रख कर आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होकर कार्य करे। कोई भी रणनीतिक गठबंधन या राजनीतिक झुकाव इस वैश्विक लड़ाई की दिशा और प्रभाव को कमज़ोर नहीं करना चाहिए।

इस लड़ाई में पहला और सबसे बुनियादी कदम आतंकवाद की एक सर्वस्वीकृत और व्यावहारिक परिभाषा तय करना होगा। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन’ के माध्यम से इस दिशा में प्रयास किया है, किंतु अब तक कोई सर्वसम्मति नहीं बन पाई है। इस स्पष्ट परिभाषा के अभाव में आतंकवादी हमलों की जांच, कानूनी कार्रवाई और अभियुक्तों के प्रत्यर्पण जैसी प्रक्रियाएं बाधित होती हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि वैश्विक समुदाय शीघ्र एक स्पष्ट परिभाषा तय करे ताकि आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई प्रभावी और न्यायपूर्ण हो सके।

दूसरा, केवल आतंकी संगठनों को निशाना बनाना पर्याप्त नहीं है। उन देशों की आर्थिक व्यवस्था को भी प्रभावित करना होगा जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आतंकवाद को प्रायोजित करते हैं। पाकिस्तान इसका स्पष्ट उदाहरण है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को यह समझना होगा कि पाकिस्तान को दिए जाने वाले बेलआउट पैकेज और ऋण किस प्रकार सीमापार आतंकवाद के पोषण में खर्च होते हैं। भारत ने IMF में दिए गए बयान में यह उजागर किया है कि आतंकवाद को समर्थन देने वाले देश को बार-बार आर्थिक सहायता देना न केवल गलत संदेश देता है, बल्कि वैश्विक मूल्यों की अवहेलना भी करता है। यह न केवल वित्तीय एजेंसियों की साख पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है, बल्कि ऐसे देशों के लिए एक तरह का प्रोत्साहन भी बन जाता है। जब तक पाकिस्तान अपने आतंकी नेटवर्क को पूर्णतः और ईमानदारी से समाप्त नहीं करता, तब तक उसे किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता नहीं दी जानी चाहिए। FATF द्वारा उसे ग्रे लिस्ट में बनाए रखना एक तार्किक और अनिवार्य कदम है।

तीसरा, ऑपरेशन सिंदूर के पश्चात यह तथ्य और स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान में स्टेट और नान-स्टेट ऐक्टर्स की गतिविधियों में कोई विभाजन रेखा नहीं बची है। यह तथ्य तब और भी पुष्ट होता है जब लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे संगठनों के आतंकवादियों को राज्य के अधिकारियों द्वारा सम्मान के साथ अंतिम संस्कार दिया जाता है। एक ऐसा देश, जिसके सैन्य अधिकारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नामित आतंकियों की अंत्येष्टि में भाग लेते हों, उससे आतंकवाद के विरुद्ध सहयोग की अपेक्षा करना भोलापन होगा। इसके अतिरिक्त, यह खतरा भी लगातार बना हुआ है कि पाकिस्तान में परमाणु हथियारों की सुरक्षा कमजोर पड़ सकती है और वे नान-स्टेट ऐक्टर्स के हाथों में पहुंच सकते हैं। यह समस्त मानवता के लिए अत्यंत गंभीर खतरा है। अतः यह आवश्यक है कि पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की निगरानी में लाया जाए।

चौथा, प्रॉक्सी युद्ध की चुनौती भी उतनी ही खतरनाक है। कुछ देश अपने मित्र राष्ट्रों की आड़ में अपने पड़ोसी देशों में अस्थिरता फैलाते हैं, और जब तक इस प्रवृत्ति को सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं किया जाएगा, तब तक यह सिलसिला चलता रहेगा। आतंकी हमलों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया किसी विशेष स्थान या पीड़ितों की राष्ट्रीयता पर आधारित नहीं होनी चाहिए। जब देश अपने हितों के अनुसार यह तय करते हैं कि किस हमले की निंदा करनी है और किसे अनदेखा करना है, तब यह आतंकवाद के विरुद्ध सामूहिक प्रयासों को कमजोर करता है और अप्रत्यक्ष रूप से आतंकियों को वैधता प्रदान करता है।

पांचवां, पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी संगठनों के सुरक्षित ठिकानों का प्रभाव केवल दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नैनोटेक्नोलॉजी, ऑगमेंटेड रियलिटी और स्वचालित प्रणालियों जैसी तकनीकों के प्रयोग ने इन संगठनों की पहुंच को वैश्विक स्तर पर विस्तृत कर दिया है। अब ये खतरे किसी एक भौगोलिक सीमा तक सीमित नहीं रहते। ऐसे में इनसे निपटने के लिए वैश्विक सहयोग अनिवार्य है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 9/11 हमलों के पश्चात संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था कि हमें आतंकवाद के लिए किसी भी वैचारिक, राजनीतिक या धार्मिक औचित्य को दृढ़ता से अस्वीकार करना होगा। उन्होंने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा था कि अब प्रत्येक देश की सुरक्षा की चिंता में पूरे विश्व के कल्याण की भावना भी समाहित होनी चाहिए। यही सोच हमें एकजुट कर सकती है।

भारत आतंकवाद के सभी स्वरूपों को जड़ से समाप्त करने के अपने संकल्प में दृढ़ है। हम विश्व के सभी शांतिप्रिय राष्ट्रों से आह्वान करते हैं कि वे अपने राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर इस संघर्ष में साथ आएं। आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित, शांत और स्थिर विश्व की रचना हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी हैI

Ujala Sanchar
Author: Ujala Sanchar

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