
BRICS शिखर सम्मेलन ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के बीच एक प्रमुख वार्षिक बैठक है, जिसका उद्देश्य इन पांच उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के बीच सहयोग को मजबूत करना है। यह समूह वैश्विक राजनीति, व्यापार और वित्तीय ढांचे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। BRICS का उद्देश्य विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करना, वैश्विक शक्ति संतुलन को पश्चिमी देशों से हटाकर एक बहु-ध्रुवीय दुनिया की ओर ले जाना और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
BRICS के सदस्य देशों का वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में महत्वपूर्ण योगदान है, और ये देश अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने विचारों और नीतियों को लेकर पश्चिमी देशों से अक्सर अलग रुख अपनाते हैं। BRICS का कामकाज विभिन्न मुद्दों पर संवाद, सहयोग, और नए विचारों के आदान-प्रदान के आधार पर चलता है, जैसे कि आर्थिक विकास, वैश्विक व्यापार और जलवायु परिवर्तन। इन बैठकों में सदस्य देश अपने-अपने क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय हितों पर चर्चा करते हैं और सामूहिक रूप से कार्रवाई के मार्ग निर्धारित करते हैं।
BRICS शिखर सम्मेलन में भारत की भूमिका प्रमुख होती जा रही है, क्योंकि भारत अपने बढ़ते आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव के साथ वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है। भारत, विकासशील देशों के नेता के रूप में अपनी छवि को मजबूत करना चाहता है और विश्व मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत कर रहा है। भारत की इस बढ़ती भूमिका के कारण पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका और यूरोपीय संघ की निगाहें BRICS पर केंद्रित हैं। वे इसे एक ऐसा मंच मानते हैं जो पश्चिमी प्रभुत्व वाले अंतरराष्ट्रीय ढांचे को चुनौती दे सकता है।
वहीं, BRICS में चीन और भारत के बीच खींचतान का एक अलग ही स्तर है। चीन आर्थिक रूप से BRICS का सबसे बड़ा सदस्य है और अपनी आर्थिक और रणनीतिक शक्ति का उपयोग कर इस समूह में नेतृत्वकारी भूमिका निभाना चाहता है। हालांकि, भारत इस बात को लेकर सजग रहता है कि चीन का प्रभाव अत्यधिक न हो जाए। सीमा विवाद और कूटनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति रहती है, जो BRICS के भीतर उनके सहयोग को जटिल बनाती है। इसके बावजूद, दोनों देश इस मंच पर अपने मतभेदों को पीछे रखकर वैश्विक मुद्दों पर सहयोग करने की कोशिश करते हैं।
इस प्रकार, BRICS शिखर सम्मेलन एक ऐसा मंच है जो वैश्विक शक्ति संरचना को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और इसमें भारत की बढ़ती भूमिका ने पश्चिमी देशों और चीन दोनों की चिंताओं को जन्म दिया है।

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