
Varanasi: काशी नगरी में महापर्व छठ पर्व की तैयारियां तेज हो गई हैं। घर-घर में पूजन के सामग्रियां तैयार की जा रही हैं। वहीं, घाटों पर लोग अपनी-अपने वेदी बनाकर उस पर नाम लिख उसकी सुरक्षा में लग गए हैं। नहाय-खाय के साथ व्रत का शुभारंभ होगा। आइए जानते हैं पूजन की अन्य तिथियां और समय…
सूर्य की उपासना का महापर्व छठ मंगलवार को नहाय खाय के साथ शुरू होगा। गंगा के 84 घाट, 63 कुंड और तालाबों पर छठ की वेदियां सजने लगी हैं। चार दिवसीय महापर्व के दौरान महिलाएं संतान की लंबी आयु के लिए 36 घंटे का निर्जला व्रत रखेंगी। छठ का समापन आठ नवंबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर होगा।
ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी ने बताया कि पंचांग के अनुसार डाला षष्ठी या कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि छह नवंबर को रात 9:37 बजे लग रही है और सात नवंबर रात 9:02 बजे तक रहेगी। सात नवंबर को सूर्यास्त शाम 5:28 मिनट पर होगा। वहीं आठ नवंबर को सुबह 6:32 बजे सूर्योदय होगा।
अरुणोदय काल में द्वितीय अर्घ्यदान के बाद व्रत का पारण होगा। सात नवंबर के दिन शाम को छठ का पहला अर्घ्य दिया जाएगा। सुबह का अर्घ्य अगले दिन आठ नवंबर को दिया जाएगा। इस बार कार्तिक शुक्ल षष्ठी पर यायी जय योग और रवि योग का निर्माण हो रहा है। ये दोनों योग पुण्य की अभिवृद्धि कराने वाले होंगे। मां सीता से आशीर्वाद लेकर दानवीर कर्ण ने भी छठ पूजा की थी।
इस दिन होंगे ये काम
- नहाय-खाय : नहाय-खाय से छठ पूजा की शुरुआत होती है। व्रत करने वाली महिलाएं नहा धोकर भात, चना दाल और लौकी का प्रसाद बनाकर ग्रहण करती हैं।
- खरना : दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस दिन प्रसाद बनाया जाता है। माताएं दिनभर व्रत रखती हैं और पूजा के बाद खरना का प्रसाद खाकर 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ करती हैं। इस दिन मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से आग जलाकर प्रसाद तैयार किया जाता है।
- संध्या अर्घ्य : तीसरे दिन शाम के समय नदी या तालाब में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। बांस के सूप में फल, गन्ना, चावल के लड्डू, ठेकुआ सहित अन्य सामग्री रखकर पानी में खड़े होकर पूजा की जाती है।
- उषा अर्घ्य और पारण : चौथे व अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन व्रती अपने व्रत का पारण करती हैं। प्रसाद बांटकर पूजा का समापन होता है।
- होती है भगवान सूर्य की पूजा : डाला छठ में प्रत्यक्ष देव सूर्य देव की पूजा होती है लेकिन डाला छठ पर भगवान सूर्य की दोनों पत्नियां ऊषा-प्रत्यूषा सहित छठी मईया का भी पूजन भगवान आदित्य के साथ होता है।
पहला दिन | 5 नवंबर | नहाय खाय |
दूसरा दिन | 6 नवंबर | खरना |
तीसरा दिन | 7 नवंबर | संध्या अर्घ्य |
चौथा दिन | 8 नवंबर | उषा अर्घ्य |

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