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गाजीपुर में सीएम दौरे पर मीडिया की अनदेखी: उठे लोकतंत्र और पत्रकारिता पर पांच गंभीर सवाल

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गाजीपुर: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गाजीपुर दौरे से जुड़ी एक अहम और चिंताजनक बात अब सुर्खियों में है—मीडिया की उपेक्षा। मुख्यमंत्री के आगमन पर जिले के अधिकांश पत्रकारों को कार्यक्रम स्थल से दूर रखा गया, जिससे न केवल मीडिया समुदाय में रोष है, बल्कि लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।

सूत्रों के अनुसार, सीएम कार्यक्रम में सिर्फ 15 पत्रकारों को ही प्रवेश पास जारी किए गए, जबकि जिले में सैकड़ों पत्रकार सक्रिय हैं। जिन पत्रकारों को पास दिए गए, उनके दस्तावेज़ तक एक्सपायर पाए गए, फिर भी उन्हें अंदर जाने दिया गया। बाकियों को गेट पर ही रोक दिया गया, और इस चयन प्रक्रिया को लेकर प्रशासन की कोई आधिकारिक सफाई नहीं आई।

अब गाजीपुर के पत्रकार पूछ रहे हैं ये 5 बड़े सवाल

1. क्या पत्रकारिता अब अनुमति आधारित होगी?

पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। यदि अब पत्रकारों को खबर कवर करने के लिए प्रशासनिक पसंद-नापसंद से छांटा जाएगा, तो यह न केवल स्वतंत्र प्रेस की हत्या है बल्कि जनसंचार के मूल्यों पर भी सवाल है।

2. सैकड़ों पत्रकारों को क्यों दरकिनार किया गया?

गाज़ीपुर में दर्जनों समाचार पत्र, पोर्टल्स और चैनलों के प्रतिनिधि हैं, लेकिन केवल “चुने हुए” पत्रकारों को बुलाया गया। क्या यह प्रशासन की अपनी ‘फेवरिट लिस्ट’ तैयार करने की प्रक्रिया है? क्या उन पत्रकारों को बुलाया गया, जो केवल सरकार की प्रशंसा करते हैं?

3. क्या मुख्यमंत्री से सच छिपाया गया?

क्या यह संभव है कि अधिकारी नहीं चाहते थे कि मुख्यमंत्री को ज़िले की वास्तविक स्थिति का पता चले? क्योंकि जब सवाल पूछने वाले पत्रकार ही कार्यक्रम से बाहर रहेंगे, तो मंच पर सिर्फ सरकारी स्क्रिप्ट ही गूंजेगी।

4. क्या यह लोकतंत्र को चुप कराने की कोशिश है?

मीडिया को रोकना केवल पत्रकारों का अपमान नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर हमला है। यह एक ऐसी मानसिकता को दर्शाता है, जो आलोचना से डरती है और जनता की आवाज़ को दबाने में विश्वास रखती है।

5. क्या गाजीपुर की आवाज़ को बार-बार दबाया जा रहा है?

यह कोई पहली घटना नहीं है। डिजिटल, यूट्यूब और सोशल मीडिया आधारित पत्रकारों को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है, जबकि यही वे लोग हैं जो जमीन की सच्चाई जनता तक पहुंचाते हैं।

प्रशासन की मंशा पर सवाल

इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि जिला प्रशासन पत्रकारों को नियंत्रित करने की नीति पर काम कर रहा है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि किसके दबाव में? क्या यह राजनीतिक बचाव है, या जवाबदेही से भागने की रणनीति?

जरूरत है स्पष्टीकरण की और आत्ममंथन की

गाजीपुर के पत्रकार अब प्रशासन से जवाब चाहते हैं। सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि यह पूरी घटना पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर बड़ा सवाल है। यदि इस बार चुप्पी साध ली गई, तो भविष्य में पत्रकारिता केवल अनुमति से होने वाली रस्म बनकर रह जाएगी।

Ujala Sanchar
Author: Ujala Sanchar

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